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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palपीरज़ादा सैयद फ़िरोज़ुल हसन चिश्ती (लेखक) का जन्म दिनांक 03-11-1988 को अजमेर राजस्थान में हुआ, आपके दादा जनाब शैख़ उल मशायख़ दीवान सैयद इल्मुद्दीन साहब द्वितीय हज़रत ख़्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह अजमेर के वंशज एवं सज्जादानशीRead More...
पीरज़ादा सैयद फ़िरोज़ुल हसन चिश्ती (लेखक) का जन्म दिनांक 03-11-1988 को अजमेर राजस्थान में हुआ, आपके दादा जनाब शैख़ उल मशायख़ दीवान सैयद इल्मुद्दीन साहब द्वितीय हज़रत ख़्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह अजमेर के वंशज एवं सज्जादानशीन थे, आपने जीव विज्ञान में सीनियर सेकेंडरी उत्तीर्ण करने के पश्चात बी.ए. ऑनर्स इतिहास में स्नातक की उपाधि हासिल की, तत्पश्चात आपने एल.एल.बी. की उपाधि हासिल करके वकालत का पेशा अपनाया, आपने आगे शिक्षा जारी रखते हुए एल.एल.एम. की उपाधि हासिल करी, साथ ही आपको कम्पुटर व इन्टरनेट के क्षेत्र में अच्छी जानकारी है, आपको शायरी और लेखन का शौक़ रहा है, आप हिन्दी, उर्दू, अंग्रेज़ी, व अरबी भाषा के जानकार हैं, आप विश्व विख्यात सूफ़ी संत हज़रत ख़्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह के वंशज हैं, आप, अपने दादा श्री के प्राचीन पुस्तकालय की ऐतिहासिक पुस्तकों (बादशाह अकबर के काल से पूर्व से अब तक की), ऐतिहासिक दस्तावेज़ों, बादशाहों के फ़रामीन आदि का अवलोकन कर तत्पश्चात शोध कर्ताओं के शोध कार्यों एंव उच्च न्यायालयों, प्रीवी काउन्सिल व भारत के सर्वोच्च न्यायालय के कई फ़ैसलों का अध्ययन कर चकित रह गए कि यह बिखरा हुआ इतिहास अब तक सही तरीक़े से लोगों की जानकारी में क्यों नहीं लाया गया, इसी कारणवश मजबूरन आपको क़लम उठाना पड़ा और इस प्रकार से आपने “अजमेर का अनकहा इतिहास” नामक यह अनमोल रचना सम्पूर्ण विश्व वासियों के लिए एक तोहफ़े स्वरूप प्रस्तुत की है तथा अकबर महान है का नकाब बादशाह अकबर के चेहरे से उतार कर लेखक ने यह साबित किया है कि अकबर एक ज़ालिम बादशाह था ।
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भारत के मुग़ल बादशाह शाहजहाँ की पुत्री शहज़ादी जहाँआरा बेगम की फ़ारसी ज़बान में लिखित क़लमी (हस्तलिखित) किताब (रिसालाह) “मुनिस उल अरवाह” दिनांक 27 रमज़ान 1049 हिजरी / 21 जनवरी 1640 ईस्व
भारत के मुग़ल बादशाह शाहजहाँ की पुत्री शहज़ादी जहाँआरा बेगम की फ़ारसी ज़बान में लिखित क़लमी (हस्तलिखित) किताब (रिसालाह) “मुनिस उल अरवाह” दिनांक 27 रमज़ान 1049 हिजरी / 21 जनवरी 1640 ईस्वी को पूर्ण हुई थी ( जो कि ब्रिटिश पुस्तकालय लंदन, इंग्लैंड में संरक्षित रखी है ) उपरोक्त किताब का उर्दू अनुवाद फ़रवरी 1891 ईस्वी में मौलवी मोहम्मद अब्दुस्समद साहब कलीम क़ादरी अवैसी निवासी अलीगढ़ द्वारा किया गया जो मतबआ रज़वी देहलवी में सैयद मीर हसन के प्रबन्ध में छपा और टोरंटो विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में संरक्षित है, उक्त उर्दू एडिशन का हिन्दी अनुवाद इस किताब के माध्यम से प्रस्तुत है ।
हिन्दी अनुवाद : मुनिस उल अरवाह
अनुवादक : पीरज़ादा सैयद फ़िरोज़ुल हसन चिश्ती
इस किताब में प्राचीन व मध्यकालीन अजमेर का इतिहास, ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह का अजमेर आगमन व उनकी जीवनी और वंशज, पृथ्वीराज चौहान और शहाबुद्दीन, क़ुतबुद्दीन, मेव
इस किताब में प्राचीन व मध्यकालीन अजमेर का इतिहास, ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह का अजमेर आगमन व उनकी जीवनी और वंशज, पृथ्वीराज चौहान और शहाबुद्दीन, क़ुतबुद्दीन, मेवाड़ का राणा कुम्भा, मालवा के राजा (ख़िलजी वंश), अजमेर पर ख़्वाजा साहब रहमतुल्लाह अलैह के वंशजों की हुकूमत, बादशाह अकबर, जहाँगीर, शाहजहाँ, औरंगज़ेब (व मुग़ल वंश के अन्य शासक), मालदेव राठौड़, मराठा, ब्रिटिश सरकार की हुकूमत, भारत की आज़ादी के बाद का अजमेर, दरगाह ख़्वाजा साहब का संक्षिप्त इतिहास, सज्जादानशीन (दरगाह दीवान), मुतवल्ली, अजमेर की ऐतिहासिक इमारतें व मज़ारात, सूफ़ीवाद, ख़्वाजा हुसैन अजमेरी (शैख़ हुसैन अजमेरी) व उनका दीन ए इलाही के ख़िलाफ़ जिहाद, रौशनी, मुजावर (ख़ुद्दाम) दरगाह आदि का इतिहास, ऐतिहासिक दस्तावेज़ों, अकबर नामा, मुन्तख़ब-उत-तवारीख़ आदि ऐतिहासिक पुस्तकों, ऐतिहासिक शोध कार्यों, बादशाहों के फ़रामीन, ज्युडिशियल कमिश्नर अजमेर मेरवाडा व प्रीवी काउन्सिल और सुप्रीम कोर्ट ऑफ़ इण्डिया के जज्मेंट्स आदि के आधार पर हक़ीक़त व बिख़रे हुए इतिहास को एक जगह एकत्रित करके अकबर महान है का नकाब बादशाह अकबर के चेहरे से उतार कर लेखक ने यह साबित किया है कि अकबर एक ज़ालिम बादशाह था व उसके द्वारा ख़्वाजा साहब के वंशजों व अन्य उलेमाओं पर किए गए ज़ुल्मो सितम को मंज़रे आम पर लाने का प्रयास किया गया है जो "समन्दर को कूज़े में भरने के सामान है"।
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