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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Pal15 जनवरी 1958 को कानपुर में जन्म के बाद, वनस्थली विद्यापीठ एवं राजस्थान विश्वविद्यालय से एम् ए, एम् एड, एल एल बी, की शिक्षा के दौरान हिंदी-अंग्रेजी शॉर्टहैंड, घुड़सवारी,तैराकी का समुचित अनुभव लिया और स्टूडेंट पॉयलट लाइसेंस प्राप्त कियाRead More...
15 जनवरी 1958 को कानपुर में जन्म के बाद, वनस्थली विद्यापीठ एवं राजस्थान विश्वविद्यालय से एम् ए, एम् एड, एल एल बी, की शिक्षा के दौरान हिंदी-अंग्रेजी शॉर्टहैंड, घुड़सवारी,तैराकी का समुचित अनुभव लिया और स्टूडेंट पॉयलट लाइसेंस प्राप्त किया। जयपुर में सर्वश्रेष्ठ क्रेच स्थापित कर सफलतापूर्वक संचालन किया। राष्ट्रीय विद्यापीठ (माध्यमिक विद्यालय) की प्राचार्य रहीं,तत्पश्चात अंतरआवाज़ पाक्षिक समाचार पत्र की मुद्रक-प्रकाशक-सम्पादक रही।बैंक कर्मचारी के रूप में सेवाएं देने के बाद आवासीय विद्यालय में वरिष्ठ शिक्षिका रहीं और सयुंक्त परिवार की सदस्या के रूप में साधारण गृहिणी की भूमिका का सफलतापूर्वक निर्वहन भी किया। वर्तमान में दो पोतियों -मीरा (6) और प्रज्ञा (3) के साथ दिल्ली में रहते हुए स्वयं की कम्पनी क्रिएटिव बिज़नेस लैब (जो भारत के साथ साथ इंग्लॅण्ड और अमेरिका में कार्यरत है) की फाउंडर डायरेक्टर के रूप में कार्य कर रही हैं। इसके अतिरिक्त अध्ययन व् देशाटन का शौक है, देशाटन के दौरान, लगभग पूरे देश का भ्रमण कर, ईश्वर प्रदत्त प्राकृतिक सौंदर्य को निहार चुकी हैं।
अंतर-आवाज़ (कविता संग्रह), भाग्य का खेल (11 नारी-केंद्रित कहानियां), जनक-जिज्ञासा (अष्टावक्र गीता का राजस्थानी में पद्यानुवाद) के बाद चौथे कदम के रूप में (इस सोच के साथ कि प्रत्येक स्त्री या पुरुष के जीवन में किसी गंतव्य को पाने या किसी समस्या के निदान हेतु उसका संघर्ष उसके लिए एक अपना एवरेस्ट है और जो हर एक का अपना निजी और अलग होता है) यह प्रयास "अपना-अपना एवरेस्ट" पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है l
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Achievements
लेखिका के दूसरे प्रयास के रूप में पूर्व रचना ‘भाग्य का खेल’ में प्रस्तुत नारी केंद्रित रोचक कहानियों को पाठको ने जिस तरह अपनाया और सराहा उसी निरंतरता में यह चौथा प्रयास “अपना-अ
लेखिका के दूसरे प्रयास के रूप में पूर्व रचना ‘भाग्य का खेल’ में प्रस्तुत नारी केंद्रित रोचक कहानियों को पाठको ने जिस तरह अपनाया और सराहा उसी निरंतरता में यह चौथा प्रयास “अपना-अपना एवरेस्ट” भी कहीं ना कहीं नारी के विभिन्न रूपों और भूमिकाओं के इर्दगिर्द घूमता है। जिसमे दृढ संकल्प युवती का संघर्ष, नई पीढ़ी की युवती का पारम्परिक संयुक्त परिवार की महत्ता के प्रति समझ, धर्म विशेष की पुरातनपंथी सोच में पिसती हुई स्त्री का साहसिक निर्णय और पर्यावरण के प्रति प्रेम जैसे विभिन्न विषयो को रोचकता देते हुए प्रस्तुत किया गया है।
राजस्थानी भाषा में अष्टावक्र गीता का पद्य अनुवाद
अष्टावक्र गीता, गहन महत्व का एक प्राचीन ग्रंथ, आध्यात्मिकता और आत्म-साक्षात्कार की पड़ताल करता है। ऋषि अष्टावक्र और राजा जन
राजस्थानी भाषा में अष्टावक्र गीता का पद्य अनुवाद
अष्टावक्र गीता, गहन महत्व का एक प्राचीन ग्रंथ, आध्यात्मिकता और आत्म-साक्षात्कार की पड़ताल करता है। ऋषि अष्टावक्र और राजा जनक के बीच एक संवाद के माध्यम से, यह स्वयं की प्रकृति, दुनिया के भ्रामक पहलुओं और मुक्ति के मार्ग की गहरी अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।
अपनी संक्षिप्त भाषा द्वारा विशेषता, अष्टावक्र गीता भ्रम के पर्दों को काटती है, पाठकों को वास्तविकता की वास्तविक प्रकृति को समझने के लिए मार्गदर्शन करती है। यह पारंपरिक मान्यताओं को निडरता से चुनौती देता है, अहं से प्रेरित पहचानों को तोड़ता है, और साधकों को शुद्ध चेतना के प्रत्यक्ष अनुभवों की ओर प्रेरित करता है।
अष्टावक्र गीता की शिक्षाएँ आत्म-जांच के महत्व और किसी की प्रामाणिक प्रकृति की प्राप्ति पर जोर देती हैं। वे प्रकट करते हैं कि परम सत्य शरीर, मन और बुद्धि द्वारा लगाई गई सीमाओं से परे है। इन बाधाओं को पार करके, व्यक्ति मुक्ति प्राप्त कर सकता है और स्थायी शांति और संतोष की खोज कर सकता है।
आध्यात्मिक समझ के लिए अपने कट्टरपंथी दृष्टिकोण के लिए प्रसिद्ध, अष्टावक्र गीता ने सदियों से साधकों और विद्वानों को आकर्षित किया है। इसका कालातीत ज्ञान लोगों को आत्म-खोज की गहन यात्रा पर प्रेरित और मार्गदर्शन करना जारी रखता है, जिससे वे अपने भीतर मौजूद आंतरिक सत्य का पता लगाने में सक्षम होते हैं।
नारी मन की सोच, उसका अंतर्द्वंद, घर, परिवार और समाज में उसकी स्थिति, उसकी परबसता, उसके विभिन्न चरित्र, उसकी रचनात्मक शक्ति और उसका विध्वंशक रूप और अगर सही समय पर सही मार्गदर्शन मिल
नारी मन की सोच, उसका अंतर्द्वंद, घर, परिवार और समाज में उसकी स्थिति, उसकी परबसता, उसके विभिन्न चरित्र, उसकी रचनात्मक शक्ति और उसका विध्वंशक रूप और अगर सही समय पर सही मार्गदर्शन मिल जाय तो उसके रचनात्मक रूप की पराकाष्ठा। इन्हीं बिंदुओं को केंद्र में रख कर उन्हें रोचकता का पुट देते हुए कहानी विधा में प्रस्तुत किया गया है।
ईश्वर रचित मायाजाल जिसे सृष्टि का नाम दिया गया है, इसमें समाहित तत्वों के लिए मन में उत्पन्न भाव-कल्पना की जो अनुभूति मुझे महसूस हुई उसी को मैंने अपने शब्दों में कागज़-कलम के सहार
ईश्वर रचित मायाजाल जिसे सृष्टि का नाम दिया गया है, इसमें समाहित तत्वों के लिए मन में उत्पन्न भाव-कल्पना की जो अनुभूति मुझे महसूस हुई उसी को मैंने अपने शब्दों में कागज़-कलम के सहारे आपके सामने अभिव्यक्त कर दिया, जो मेरे अन्तर की आवाज़ है जिसे कविता कहा जा सकता है। मेरी भाव अभिव्यक्ति मेरे सुधि पाठक के हृदय को छूकर उसके भाव का किंचित हिस्सा बन सकी तो मेरा यह प्रयास सफल होगा।
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