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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh PalMrs Ismita Mathur ‘Muskan’ was born on 21 Feb 1962 in Meerut, Uttar Pradesh, India. After her marriage, she shifted to Madhya Pradesh, where she later joined the services of MPEB, Jabalpur, in the telecommunications department. During her service career, she was an active member of the Women’s Complaints and Redressal Committee of her organization for about ten years and got exposed to mixed experiences of her contemporaries. She took voluntary retirement from the services in 2016, after serving for a long time of 28 years. Though she was a student of science and technology, she was inclRead More...
Mrs Ismita Mathur ‘Muskan’ was born on 21 Feb 1962 in Meerut, Uttar Pradesh, India. After her marriage, she shifted to Madhya Pradesh, where she later joined the services of MPEB, Jabalpur, in the telecommunications department.
During her service career, she was an active member of the Women’s Complaints and Redressal Committee of her organization for about ten years and got exposed to mixed experiences of her contemporaries. She took voluntary retirement from the services in 2016, after serving for a long time of 28 years.
Though she was a student of science and technology, she was inclined towards art and culture, and her hobbies hovered around literature, dance, music, painting, etc.
The surrounding environment and day-to-day experiences related to the workplace, home, natural splendour and beauty of Jabalpur and long journeys to various parts of India kindled her writing skills which were expressed in the form of short stories, poems, memoirs, etc. Some of her writings have been published in the Sarita, Vanita and Madhurima sections of Dainik Bhaskar from time to time.
She regularly uploads audio stories in Hindi on YouTube, over the podcast, under the names ‘Malti Ke Phool’ and Pratilipi FM. Earlier her two books namely Tumhari Kahani and Vo Kucch Jaani, Kucch Anjaani were published by Notion Press in 2021. In recognition of her service to enriching Hindi literature, she has been conferred with a national level award by Kadambari, a literary organization, and honoured by Paatheya publication house with ‘Patheya Shri Alankaran’. Madhya Pradesh Poorv Kshetra Vidyut Vitaran Company has also honoured her for her literary contributions on the occasion of Women's Day 2022.
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किसी भी समय पढ़ी जा सकने वाली कहानियों का यह संग्रह, वस्तुतः सभी उम्र के पाठकों के मनोरंजन के लिए, एक मिश्रित कैनवास पेश करता है, जिसमें एक ओर शामिल है प्रकृति में फैली, झूलते हरे प
किसी भी समय पढ़ी जा सकने वाली कहानियों का यह संग्रह, वस्तुतः सभी उम्र के पाठकों के मनोरंजन के लिए, एक मिश्रित कैनवास पेश करता है, जिसमें एक ओर शामिल है प्रकृति में फैली, झूलते हरे पेड़ों की सुंदरता, कोयल की कूहू-कूहू, घरेलू गौरैया की चहचहाहट, मासूम सफेद बिल्ली की म्याऊं, एक चमकदार नवजात बछड़ा तो वहीं दूसरी ओर नन्हें-मुन्नों की उल्लासपूर्ण गतिविधियाँ और छोटे बच्चों की चुलबुलाती शरारतें। इस संग्रह में मानवीय रिश्तों की भावनात्मक पेचीदगियों और संवेदनाओं पर आधारित कुछ कहानियाँ भी शामिल हैं।
ये छोटी-छोटी सुखदायक कहानियाँ पाठकों के अंतर्मन को छू जाएँगी और वे उबाऊ दैनिक दिनचर्या के तनाव को भूल सकेंगे। इन ख़ूबसूरत कहानियों को पढ़कर, कुछ देर के लिये एक काल्पनिक दुनिया में विचरण करते पाठकों को, अवश्य ही सुकून और हल्कापन महसूस होगा।
असीम आकाश में कभी-कभी दृष्टिगोचर होते, इन्द्र-धनुष में समाहित अगणित रंगों की भाँति, सुख-दुख, रोमांस, प्यार और खुशी तथा कष्ट एवं शोक के मिले जुले पलों में भाव-विभोर या भाव-विह्वल क
असीम आकाश में कभी-कभी दृष्टिगोचर होते, इन्द्र-धनुष में समाहित अगणित रंगों की भाँति, सुख-दुख, रोमांस, प्यार और खुशी तथा कष्ट एवं शोक के मिले जुले पलों में भाव-विभोर या भाव-विह्वल कर देने वाली विभिन्न अनुभूतियों और एहसासों से भरे, नारी-जीवन के भी अनेक आयाम हैं।
वामा का अर्थ होता है स्त्री या नारी। वास्तविक जीवन में अनुभूत, नारी-जीवन के विभिन्न आयामों को, दर्पण की भाँति समाज के सम्मुख रखने का प्रयास है “वामा का इन्द्रधनुष”। इक्कीस कहानियों के इस संकलन में हर उम्र, हर वर्ग के नारी जीवन के विविध पहलुओं का दर्शन होता है।
“होली” कहानी में वर्णित रियासत की ‘रानी साहिबा’ से लेकर, परिवार की दयनीय आर्थिक स्थिति के चलते, परिवार के जीवनयापन हेतु, परिवार से ही मीलों दूर रहकर कमाने के लिये अभिशप्त “कांता” कहानी की नायिका तक.....
परंपरा और रूढ़ियों में बँधे पितृ-सत्तात्मक समाज में, आज से साठ-सत्तर वर्ष पूर्व संघर्ष-रत नारी की व्यथा को दर्शाती, “पीला सिंदूर” और “तबला” कहानियों की नायिकाओं से लेकर, “टिमटिमाते तारे” और “काव्या” की नायिकाओं जैसी आधुनिक नारी तक.....
भारतीय सामाजिक परिवेश की लगभग सत्तर साल पहले की अवधि से लेकर वर्तमान समय तक फैली पृष्ठभूमि पर आधारित, इस संग्रह के विभिन्न कथानक, पुरुष के प्रति स्त्री-मन में विलोड़ित होते तीव्र प्राकृतिक दैहिक आकर्षण के साथ, नारी जीवन में घुले-मिले विविध इन्द्र-धनुषी रंग, संवेदनशील पाठकों के हृदय को छू जाने में सफ़ल रहेंगे और उन्हें नारी जीवन की समस्याओं और नारी-उत्थान के विषय में सोचने पर विवश कर देंगे।
वो, जो कभी कहीं अचानक मिल जाती है, किसी पार्क में,
सोसायटी की किसी बैंच पर, फ़व्वारे के किनारे लगी सीट पर ।
वो, जो न जाने किस भावावेश में आकर साझा कर लेती है,
अपनी व्यथा, अपन
वो, जो कभी कहीं अचानक मिल जाती है, किसी पार्क में,
सोसायटी की किसी बैंच पर, फ़व्वारे के किनारे लगी सीट पर ।
वो, जो न जाने किस भावावेश में आकर साझा कर लेती है,
अपनी व्यथा, अपने मन के कोने में छुपा कोई सुख-दु:ख
और हल्का कर लेती है अपना मन।
वो, छूना चाहती है, आकाश के इन्द्रधनुष को,
देखना चाहती है, चाँदनी रात में “दूधिया से चाँद” को,
वो, जो बांधना चाहती है,
ढेर सारे “चाहत के फूल” अपने गुलाबी आँचल में ।
वही है नायिका, इस प्रस्तुति की...
“वो, कुछ जानी, कुछ अनजानी”
“उस दिन पहली बार, मैंने नीरज को ध्यान से देखा था। वह मुझे मुग्ध दृष्टि से देख रहा था। गुलाबी साड़ी में लिपटी मैं, बीरबहूटी हो गयी थी। न जाने ये कैसा सम्मोहन, कैसा इन्द्रजाल मेरे चा
“उस दिन पहली बार, मैंने नीरज को ध्यान से देखा था। वह मुझे मुग्ध दृष्टि से देख रहा था। गुलाबी साड़ी में लिपटी मैं, बीरबहूटी हो गयी थी। न जाने ये कैसा सम्मोहन, कैसा इन्द्रजाल मेरे चारों और बुनता जा रहा था। मैं भूल गयी थी कि मैं नीरज से पाँच वर्ष बड़ी और बहुत अधिक क्वॉलिफाइड हूँ……।
……आम के पत्तों और गेंदों के फूलों से सजे मंडप में जब पंडित जी ने मेरा कोमल हाथ नीरज के दृढ़निश्चयी हाथों में दिया, तो मेरा अंग-अंग रोमांचित हो उठा। मैं भूल गयी, कि मेरा विवाह कितनी कठिनाई से हो रहा है। और कैसे चुपके, चुपके……।”
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बासंती मौसम, फूलों की बहार और उससे भी सुन्दर सजना। पँखुरी दिवा स्वप्नों में डोलती रहती। तभी एक वज्रपात हुआ। जैसे क़ुदरत ने उनके साथ बहुत बड़ा मज़ाक किया था.....।
......पँखुरी फ़फ़क पड़ी। इतने दिनों का दबा हुआ लावा जैसे बह निकला,
“नहीं चाचीजी! सात फेरों के बंधन में नहीं बंधे तो क्या हुआ। मन से मन का बंधन तो है ना। मैं उनको नहीं भुला सकती......।
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“तुम्हारी कहानी” लगभग एक शताब्दी के नारी-जीवन की यात्रा को दर्शाती हैं, जिसमें नानी, दादी के ज़माने से लेकर इक्कीसवीं सदी के आधुनिक युग तक की लड़कियाँ भी मिलेगी। लगभग तीन पीढ़ियों की कहानियाँ।
मेरा फौजी बेटा बात उस दिन की है, जब मैं अपनी बिटिया को दिल्ली छोड़कर आ रही थी। मुझे स्टेशन छोड़कर वह लौट गयी। बहु Read More...
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