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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh PalThe author, Mr Jaypalsingh Girase has a lot of interest in history. He has delivered hundreds of public lectures in different states of India on the biographies of Maharana Pratapsingh, Chhatrapati Shivaji Maharaj and Swami Vivekananda. He is also famous for his lectures on the saga of ‘Rajasthan’s Jauhar and Saka’, ‘Viramdeo and Jalour’, ‘Hamirdeo and Ranthambore’. His articles and poems are published in many dailies, weeklies and monthly magazines. He has visited a lot of historical places which are famous for their glorious past. He has created the first blog in Khandeshi DialRead More...
The author, Mr Jaypalsingh Girase has a lot of interest in history. He has delivered hundreds of public lectures in different states of India on the biographies of Maharana Pratapsingh, Chhatrapati Shivaji Maharaj and Swami Vivekananda. He is also famous for his lectures on the saga of ‘Rajasthan’s Jauhar and Saka’, ‘Viramdeo and Jalour’, ‘Hamirdeo and Ranthambore’. His articles and poems are published in many dailies, weeklies and monthly magazines. He has visited a lot of historical places which are famous for their glorious past. He has created the first blog in Khandeshi Dialect Ahirani named ‘UBGELVADI.COM’. An edition in Marathi on the biography of Maharana Pratapsing has already been published and a poetry collection in Marathi language, a satire in Ahirani dialect and a novel in Hindi are about to be published soon.
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जात-धरम तज वरग मन; वृद्ध-शिशु-नर-नारिह।
जद-जद भारत जुंझसि, पाथल जय थारिह।।
- पं. रामसिंह सोलंकी
अर्थात: हे प्रताप, जब-जब भारत वर्ष पर विपदा की स्थिति आएगी तब-तब भा
जात-धरम तज वरग मन; वृद्ध-शिशु-नर-नारिह।
जद-जद भारत जुंझसि, पाथल जय थारिह।।
- पं. रामसिंह सोलंकी
अर्थात: हे प्रताप, जब-जब भारत वर्ष पर विपदा की स्थिति आएगी तब-तब भारत वर्ष के आबाल-वृद्ध तथा नर-नारी अपने जाति-धर्म-पंथ-प्रान्त की संकुचित भावना से ऊपर उठकर केवल तुम्हारे नाम का जयजयकार करेगी!
'या तो कार्य सिद्ध होगा या मृत्यु का वरन किया जायेगा' महाराणा प्रतापसिंह का यह भीषण प्रण उस काल के क्रांतिकारी स्वर्णिम इतिहास का गौरव लिखने के लिए कलम को सदैव प्रेरित करता है। राष्ट्र के सत्व-स्वत्व और स्वाभिमान की रक्षा के लिए भीषण कष्टों का सामना कर लगातार २५ साल तक साम्राज्यवादी शक्ति के साथ कड़ा संघर्ष करनेवाले राष्ट्रगौरव महाराणा प्रतापसिंह जी का चरित्र केवल भारत राष्ट्र के लिए ही नहीं अपितु समस्त संसार के स्वतंत्रता और स्वाधीनता प्रेमी नागरिकों के लिए आज भी स्फूर्ति का स्रोत है।
जब भारत की कई हिन्दू-मुस्लिम शासकों ने साम्राज्यवादी मुघल सल्तनत के सामने अपनी सार्वभौमिकता खो दी थी तब उसी प्रतिकूल संक्रमणकाल के दौरान महाराणा प्रतापसिंह मेवाड़ की धरती पर प्रखर विरोध का केंद्र बने रहे तथा सिमित संसाधन होकर भी गुरिल्ला और छापामार युद्धतंत्र का अवलंब कर अपनी स्वतंत्रता और सार्वभौमिकता को कायम रखा। विश्व के इतिहास में यह अनोखा उदाहरण होगा जहाँ अपने राजा के साथ-साथ प्रजा ने भी वनवास तथा कष्टप्रद जीवन व्यतीत किया। स्वभूमि विध्वंस जैसे कठोर कदम उठाकर मुघल रणनीति को परास्त करनेवाली सामरिक रणनीति आज भी सामरिक शास्रों के अध्ययन कर्ता तथा संशोधकों का ध्यान आकृष्ट करती है।
लेखक ने महाराणा प्रतापसिंह के जीवन काल की घटनाओं से सम्बंधित सैकड़ो सन्दर्भ ग्रंथों-साधनों का गहन अध्ययन कर, महाराणा प्रतापसिंह के वंशजों से प्रत्यक्ष रूबरू साक्षात्कार कर तथा महाराणा से सम्बंधित सभी स्थलों का प्रत्यक्ष अभ्यासदौरा कर इस ग्रन्थ में इतिहास की एक अभूतपूर्व त्याग-बलिदान और शौर्य से ओतप्रोत अपराजित संघर्ष गाथा को अभिव्यक्त करने का प्रयास किया है।
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