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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh PalThe author or to be more precise the poet of this book is lawyer by profession of 52 yeas standing. As Valmiki’s Ramayana was his first poetry so is this book is the first poetry of this book. The author was active politician & went to jail for many times while leading the mass movements. He has visited many countries of the world & is the ardent student of the mythology.Read More...
The author or to be more precise the poet of this book is lawyer by profession of 52 yeas standing. As Valmiki’s Ramayana was his first poetry so is this book is the first poetry of this book. The author was active politician & went to jail for many times while leading the mass movements. He has visited many countries of the world & is the ardent student of the mythology.
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वाल्मीकि रामायण के हिंदी में कई गध्ध में संस्करण निकल चुके है लेकिन यह पहली बार है कि किसी महाकाव्य का प्रत्येक संस्कृत श्लोक का हिंदी में पध्धानुवाद ताल, लय एवं गति के अनुसार छं
वाल्मीकि रामायण के हिंदी में कई गध्ध में संस्करण निकल चुके है लेकिन यह पहली बार है कि किसी महाकाव्य का प्रत्येक संस्कृत श्लोक का हिंदी में पध्धानुवाद ताल, लय एवं गति के अनुसार छंद एवं अलंकारों से युक्त एक महाकाव्य श्री व्यासजी ने प्रस्तुत किया है। महर्षि वाल्मीकि की मूल रचना संस्कृत में रहने के कारण वह जनसामान्य की दृष्टि से प्राय: ओझल ही रही लेकिन अब इस पध्धानुवाद के माध्यम से वह सर्वसाधारण के सम्मुख प्रस्तुत की गई है। व्यासजी ने कई सालों तक अथक परिश्रम करके यह महाकाव्य हमारे सम्मुख प्रस्तुत किया है जिसके द्वारा वाल्मीकिजी द्वारा जो भाव एवं जो प्रकृति चित्रण प्रस्तुत किया गया है ठीक हूबहू उसी रुप में व्यासजी ने हिंदी में हमारे सम्मुख यह प्रस्तुत किया है। आशा है हिंदी के सुविज्ञ पाठक इसका रसास्वादन कर सकेंगे।
वाल्मीकि रामायण के हिंदी में कई गध्ध में संस्करण निकल चुके है लेकिन यह पहली बार है कि किसी महाकाव्य का प्रत्येक संस्कृत श्लोक का हिंदी में पध्धानुवाद ताल, लय एवं गति के अनुसार छं
वाल्मीकि रामायण के हिंदी में कई गध्ध में संस्करण निकल चुके है लेकिन यह पहली बार है कि किसी महाकाव्य का प्रत्येक संस्कृत श्लोक का हिंदी में पध्धानुवाद ताल, लय एवं गति के अनुसार छंद एवं अलंकारों से युक्त एक महाकाव्य श्री व्यासजी ने प्रस्तुत किया है। महर्षि वाल्मीकि की मूल रचना संस्कृत में रहने के कारण वह जनसामान्य की दृष्टि से प्राय: ओझल ही रही लेकिन अब इस पध्धानुवाद के माध्यम से वह सर्वसाधारण के सम्मुख प्रस्तुत की गई है। व्यासजी ने कई सालों तक अथक परिश्रम करके यह महाकाव्य हमारे सम्मुख प्रस्तुत किया है जिसके द्वारा वाल्मीकिजी द्वारा जो भाव एवं जो प्रकृति चित्रण प्रस्तुत किया गया है ठीक हूबहू उसी रुप में व्यासजी ने हिंदी में हमारे सम्मुख यह प्रस्तुत किया है। आशा है हिंदी के सुविज्ञ पाठक इसका रसास्वादन कर सकेंगे।
वाल्मीकि रामायण के हिंदी में कई गध्ध में संस्करण निकल चुके है लेकिन यह पहली बार है कि किसी महाकाव्य का प्रत्येक संस्कृत श्लोक का हिंदी में पध्धानुवाद ताल, लय एवं गति के अनुसार छं
वाल्मीकि रामायण के हिंदी में कई गध्ध में संस्करण निकल चुके है लेकिन यह पहली बार है कि किसी महाकाव्य का प्रत्येक संस्कृत श्लोक का हिंदी में पध्धानुवाद ताल, लय एवं गति के अनुसार छंद एवं अलंकारों से युक्त एक महाकाव्य श्री व्यासजी ने प्रस्तुत किया है। महर्षि वाल्मीकि की मूल रचना संस्कृत में रहने के कारण वह जनसामान्य की दृष्टि से प्राय: ओझल ही रही लेकिन अब इस पध्धानुवाद के माध्यम से वह सर्वसाधारण के सम्मुख प्रस्तुत की गई है। व्यासजी ने कई सालों तक अथक परिश्रम करके यह महाकाव्य हमारे सम्मुख प्रस्तुत किया है जिसके द्वारा वाल्मीकिजी द्वारा जो भाव एवं जो प्रकृति चित्रण प्रस्तुत किया गया है ठीक हूबहू उसी रुप में व्यासजी ने हिंदी में हमारे सम्मुख यह प्रस्तुत किया है। आशा है हिंदी के सुविज्ञ पाठक इसका रसास्वादन कर सकेंगे।
वाल्मीकि रामायण के हिंदी में कई गध्ध में संस्करण निकल चुके है लेकिन यह पहली बार है कि किसी महाकाव्य का प्रत्येक संस्कृत श्लोक का हिंदी में पध्धानुवाद ताल, लय एवं गति के अनुसार छं
वाल्मीकि रामायण के हिंदी में कई गध्ध में संस्करण निकल चुके है लेकिन यह पहली बार है कि किसी महाकाव्य का प्रत्येक संस्कृत श्लोक का हिंदी में पध्धानुवाद ताल, लय एवं गति के अनुसार छंद एवं अलंकारों से युक्त एक महाकाव्य श्री व्यासजी ने प्रस्तुत किया है। महर्षि वाल्मीकि की मूल रचना संस्कृत में रहने के कारण वह जनसामान्य की दृष्टि से प्राय: ओझल ही रही लेकिन अब इस पध्धानुवाद के माध्यम से वह सर्वसाधारण के सम्मुख प्रस्तुत की गई है। व्यासजी ने कई सालों तक अथक परिश्रम करके यह महाकाव्य हमारे सम्मुख प्रस्तुत किया है जिसके द्वारा वाल्मीकिजी द्वारा जो भाव एवं जो प्रकृति चित्रण प्रस्तुत किया गया है ठीक हूबहू उसी रुप में व्यासजी ने हिंदी में हमारे सम्मुख यह प्रस्तुत किया है। आशा है हिंदी के सुविज्ञ पाठक इसका रसास्वादन कर सकेंगे।
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