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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh PalThe Author is a student of science and an engineer by profession. An avid reader, his deep interest in the history of Hinduism is primarily due to the spiritual environment in which he was brought up. He has left his imprint on two books written by him. His first book “The story of Steel” explores the discovery of Iron in ancient India. The second book “Beyond Solar System” is an attempt to understand the cosmic mysteries beyond our Solar System. This book is a description of glorious past of Indian Subcontinent. The book traces the origin of Hinduism from the advent of Human civiRead More...
The Author is a student of science and an engineer by profession. An avid reader, his deep interest in the history of Hinduism is primarily due to the spiritual environment in which he was brought up.
He has left his imprint on two books written by him. His first book “The story of Steel” explores the discovery of Iron in ancient India. The second book “Beyond Solar System” is an attempt to understand the cosmic mysteries beyond our Solar System.
This book is a description of glorious past of Indian Subcontinent. The book traces the origin of Hinduism from the advent of Human civilization since the last Ice Age to present times. The author’s son has actively contributed to the research involved in writing this book.
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Achievements
इस पुस्तक को लिखने का उद्देश्य भारत की विज्ञानिक विरासत से लोगों को अवगत करना है। भारत मे विज्ञान का जन्म हमारे ऋषियों के मुक्त चिंतन से हुआ। हमारे ऋषियों की श्रीष्टि एवं नक्षत
इस पुस्तक को लिखने का उद्देश्य भारत की विज्ञानिक विरासत से लोगों को अवगत करना है। भारत मे विज्ञान का जन्म हमारे ऋषियों के मुक्त चिंतन से हुआ। हमारे ऋषियों की श्रीष्टि एवं नक्षत्रों का अवलोकन और चिंतन ने ज्योतिष शास्त्र को जन्म दिया। हमारे ऋषियों का मत रहा है की विज्ञान और अध्यात्म एक दूसरे के पूरक है। इन दोनो के समन्वय से ही जीवन का पर्दुभाव होता है। यही कारण है की वेद उपनिषद् दर्शन सभी मे विज्ञान और तकनीकी सोच का विवरण मिलता है। प्राचीन काल मे महर्श्रि बृगु, भारद्वाज एवं कणाद ने विज्ञान की नीव डाली। चिकित्सा मे ऋषि धन्वंत्री, शुश्रुत एवं चरक के अमूल्य योगदान का इस पुस्तक मे विवरण किया है। श्री नागार्जुन, वराहमिहीर और आर्यभट्ट की वैज्ञानिक खोज भारतीय विज्ञान के जागृत उदाहरण हैं।
मध्य कालीन युग मे मुसलमानो के आक्रमण के कारण भारतीय वैज्ञानिक परम्परा के विकास मे रूकावट आई परंतु प्राचीन भारतीय विज्ञान पर आधारित ग्रंथो के अरबी फ़ारसी अनुवाद भी हुए। इसके परीणाम स्वरूप भारतीय वैज्ञानिक परम्परा दूर देशों तक पहूची और नया रूप लिया।
मुगल शासन के बाद अँग्रेज़ी शासन स्थापित हुआ और भारतीय विज्ञान मे एक नयी चेतना आई। अब भारत आज़ाद हो गया है और हमारे वैज्ञानिक सूर्य मंडल की गहराइयों से लेकर अंतरिक्ष मे लंबी छलाँग लगा रहे हैं।
इस पुस्तक को लिखने का उदेश्य अन्तरिक्ष के गर्भ में छिपी हुई भारत की बीस हजार वर्ष की गौरवशाली विरासत को भारत वासियों और विश्व के लोगों से अवगत कराना है । वैज्ञानिकों और ऋषियों मे
इस पुस्तक को लिखने का उदेश्य अन्तरिक्ष के गर्भ में छिपी हुई भारत की बीस हजार वर्ष की गौरवशाली विरासत को भारत वासियों और विश्व के लोगों से अवगत कराना है । वैज्ञानिकों और ऋषियों मे इस बात पर सहमति है कि पृथ्वी निर्माण के उपरान्त इस धरा पर अब तक सूर्यमण्डल का आकाश गंगा की गति की स्थिति के कारण पांच हिम युग (आइस एज) बीत चुके है। पांचवा और अन्तिम हिमकाल जिसका अन्त 17000 बीसी में हुआ तब से लेकर वर्तमान भारतीय संस्कृति के इतिहास मे हमारे ऋषियों ने अपनी सोच और मुक्त चिंतन द्वारा हिंदू धर्म के इतिहास मे बहुतेरे नग जोड़े हैं।
हमारे ऋषियों ने दसावतार पुराणों द्वारा डार्विन विकासवाद के हजारों वर्ष पूर्व पृथ्वी पर जीव उत्पत्ति जैसे गंभीर प्रश्न का समाधान प्रकट किया। वर्तमान ऋषियों में विशेषकर महर्षि अरविन्द ने अपने अतिमानस वाद का सिद्धान्त उपस्थित कर इस सोच को और आगे बढाया।
हिमकाल के अन्त के साथ ही 17000 बीसी वर्ष पूर्व हमारे महर्षि अन्गिरस आदि मानव मनु, भृगु, भारद्वाज ने सृष्टि और भारतीय संस्कृति की खोज प्रारम्भ कर दी थी। भृगु ऋषि विश्व में पहले महर्षि थे जिन्होंने पृथ्वी के जीवों पर पड़ने वाले प्रभाव कों सूर्य मण्डल और नक्षत्रों के प्रभाव से जोडा और ज्योतिष तथा खगोल शास्त्र जैसे ग़ूढ विषय की नीवं डाली ।
हमारी सांस्कृतिक इतिहास की गंगा का अविरल प्रवाह सृष्टि के प्रारम्भ से बहता रहा है। बाहर से आये मध्य एशिया विशेषकर कुषाण सम्राट कनिष्क ने भारतीय ऋषियों की सोच को बढावा दिया और पहली सदी में कुषाण सम्राट कनिष्क ने आश्वघोष नागार्जुन, चरक जैसे विद्वानों को आगे बढाया जिनका नाम इतिहास मे स्वर्ण अक्षरों मे लिखा गया है।
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