Experience reading like never before
Sign in to continue reading.
Discover and read thousands of books from independent authors across India
Visit the bookstore"It was a wonderful experience interacting with you and appreciate the way you have planned and executed the whole publication process within the agreed timelines.”
Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palशिक्षा: स्नातकोत्तर (इतिहास) राँची विश्वविद्यालय राँची, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) नेट 2009 उतीर्ण। पीएच.डी. (इतिहास) राँची विश्वविद्यालय राँची। शिक्षण कार्य : वर्ष 2010 से जून 2011 तक विशु भगत महिला महाविद्यालय बेड़ो, राँची में व्याख्Read More...
शिक्षा: स्नातकोत्तर (इतिहास) राँची विश्वविद्यालय राँची,
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) नेट 2009 उतीर्ण।
पीएच.डी. (इतिहास) राँची विश्वविद्यालय राँची।
शिक्षण कार्य : वर्ष 2010 से जून 2011 तक विशु भगत महिला महाविद्यालय बेड़ो, राँची में व्याख्याता के रूप में अपनी सेवा दी ।
वर्ष 2011, अगस्त से वर्तमान में संत जेवियर्स कॉलेज महुआडांड़, झारखंड के इतिहास विभाग में सहायक प्राध्यापक एवं वाईस प्रिंसिपल (2019) के पद पर कार्यरत।
प्रस्तुत पुस्तक लेखक की पहली किताब है।
इनके द्वारा अनेक पत्र पत्रिकाओं, समाचार पत्र एवं अन्य सोशल प्लेटफार्म पर इनके आलेख छप चुके है ।
लेखक ‘जनसंघर्ष’ पत्रिका के संपादक मंडली के सदस्य है।
प्रकाशित कृतियां
समाचार पत्र
प्रभात खबर – (i) 19 जून 2020, शीर्षक “नागपुर से छोटानागपुर की ऐतिहासिक नामगाथा”
(ii) 11 दिसम्बर 2020, शीर्षक “मैं सीएनटी एक्ट 1908 हूँ”
पत्रिका
हासिये की आवाज – (i) जनवरी 2021, आदिवासियों को जानना होगा इन तीन कृषि कानूनों का सच
(ii) अगस्त 2021, जंगल वहीं बचे है जहाँ आदिवासी है
जनसंघर्ष –( i) मई 2021(ऑनलाइन संस्करण) शीर्षक “पलायन: ग्रामीण झारखंड का एक कड़वा सत्य”
(ii) जून 2021(ऑनलाइन संस्करण) शीर्षक “बिरसा के बाद अबुआ दिशुम की चुनौतियाँ”
(iii) जुलाई 2021 (ऑनलाइन संस्करण) शीर्षक “ चिच चरि हुज़ूर चिच चरि : महुआडांड़ को समझने का एक प्रयास
ई-मेल : sanjaybara85@gmail. com
Read Less...
Achievements
भूमि का प्रश्न आदिवासियों के लिए कितना महत्वपूर्ण है, इसका उत्तर औपनिवेशिक काल के इतिहास में छोटानागपुर में हुए कई आदिवासी विद्रोह एवं आंदोलनों के संदर्भ में समझा जा सकता है ।
भूमि का प्रश्न आदिवासियों के लिए कितना महत्वपूर्ण है, इसका उत्तर औपनिवेशिक काल के इतिहास में छोटानागपुर में हुए कई आदिवासी विद्रोह एवं आंदोलनों के संदर्भ में समझा जा सकता है । भूमि के बिना आदिवासी अस्तित्वविहीन है, भूमि आदिवासी की पहचान है, जिससे उसकी संस्कृति, परंपरा एवं उनका इतिहास जुड़ा है । आरंभ में जब आदिवासियों का छोटानागपुर में प्रवेश हुआ तब उन्होंने इन घने वन जंगलों को साफ कर अपने लिए भूमि तैयार की। यह भूमि प्रकृति प्रदत्त थी इसलिए इस भूमि पर सर्वप्रथम उनका अधिकार था। जहाँ वह अपनी प्राचीन संस्कृति एवं परंपरा का निर्वाह करता हुआ जीवन यापन कर रहा था, परंतु सभ्यता के विकास के साथ ही यहाँ निवास करने वाले मुंडा, उराँव एवं अन्य आदिवासी समुदाय का बाहरी शोषकों द्वारा शोषण किया जाने लगा एवं इनकी भूमि इनसे छीन ली जाने लगी । इसी के प्रतिक्रिया स्वरूप छोटानागपुर के आदिवासियों ने इन शोषकों (दिकू) के खिलाफ विद्रोह का झंडा बुलंद किया। उनके पास न तो धन था और न ही कोई बहुमूल्य वस्तु, वास्तव में आदिवासियों के लिए उनकी भूमि ही सबसे कीमती एवं सर्वश्रेष्ठ संपत्ति थी। भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के पूर्व से ही छोटानागपुर के आदिवासियों ने अपने जल जंगल ज़मीन की रक्षा के लिए अपना बलिदान दे कर शासकों को इस विषय पर चिंतन मनन करने एवं उनके लिए भूमि कानून बनाने के लिए विवश कर दिया था। छोटानागपुर के आदिवासियों के लिए भूमि की महत्ता प्राचीन काल से लेकर आजतक बनी हुई है और भूमि से उनका यह विशिष्ट जुड़ाव उन्हें समाज के अन्य लोगों की श्रेणी से पृथक करती है। प्रस्तुत पुस्तक छोटानागपुर के आदिवासियों के आरंभ से भूमि एवं इससे संबंधित विभिन्न आयामों को रेखांकित करते हुए आदिवासियों के जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं का विश्लेषण कर उनपर महत्वपूर्ण प्रकाश डालती है।
Are you sure you want to close this?
You might lose all unsaved changes.
The items in your Cart will be deleted, click ok to proceed.