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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh PalShri Shyam Sundar Bhatt is a distinguished teacher, academician and a writer skilled in engraving historical characters in novels. Out of the 24 books he has published so far, 15 are historical novels. His book based on Maharana Pratap has also been a part of the Rajasthan Board of Secondary Education. Apart from Mewar and Sindh, his books Bandh Muththiyon Ke Sapne, based on the life and deeds of Indians established in Fiji, and Kalajayee Shri Parashuram, based on the life of Shri Parashuram Ji, were well received by readers. Sanskratik Bhugol Kosh, a dictionary which is a repository of culturRead More...
Shri Shyam Sundar Bhatt is a distinguished teacher, academician and a writer skilled in engraving historical characters in novels. Out of the 24 books he has published so far, 15 are historical novels. His book based on Maharana Pratap has also been a part of the Rajasthan Board of Secondary Education. Apart from Mewar and Sindh, his books Bandh Muththiyon Ke Sapne, based on the life and deeds of Indians established in Fiji, and Kalajayee Shri Parashuram, based on the life of Shri Parashuram Ji, were well received by readers. Sanskratik Bhugol Kosh, a dictionary which is a repository of cultural geographical terminologies, is his unique contribution to the society.
Read Less...Achievements
सिंध वैदिक काल से लेकर आज तक अनवरत सत्ता संघर्ष का केंद्र रहा है, किंतु सातवीं शताब्दी में सिंध पर हुए आक्रमणों में न केवल सत्तांतरण अपितु आस्थान्तरण, कत्लेआम, मृत सैनिकों के सिर
सिंध वैदिक काल से लेकर आज तक अनवरत सत्ता संघर्ष का केंद्र रहा है, किंतु सातवीं शताब्दी में सिंध पर हुए आक्रमणों में न केवल सत्तांतरण अपितु आस्थान्तरण, कत्लेआम, मृत सैनिकों के सिर काटकर युद्ध भूमि में उन्हें एक टेकरी के रूप में सजाना, युवतियों को अरब अधिकारियों के मनोरंजन हेतु भेजना, ऐसे अनेक नए प्रचलनों का प्रवेश, भारतीय जनमानस को स्तब्ध करने जैसा प्रयास था| इन प्रयासों में गृह छिद्रों के रूप में देश की अपेक्षा स्वहित को प्रधान मानने वाले वणिक वर्ग के सत्ता तक पहुंचे द्विमुखी सर्पीले अजगरों की भूमिका भी प्रमुख रूप से आकांताओं के हित में प्रभावी रही थी| आंखें सदा घर के डंडों से ही फूटती आई है| परिस्थितियां आज भी लगभग वैसी ही है जैसी आठवीं शताब्दी मे थी| आज के इतिहास के अध्याय जिस रूप में पुनरावर्तित हो रहे है, उनकी जड़े सिंध नरेश दाहर की छलपूर्वक हत्या के रूप में दिखाई देती है|
श्री हारीत, चचदेव, दाहर सेन और दाहर जैसे सिन्धु के ऐतिहासिक पूर्वजों की तत्कालीन परिस्थितियों के विश्लेषण के रूप में यह उपन्यास भारत के प्रबुद्ध लोगों को समर्पित है|
देवव्रत नामक हस्तिनापुर का युवराज अपने पिताश्री की प्रसन्नता के लिए आजन्म कुँवारा रहकर सत्ताशीर्ष से स्वयं को विरत कर देने की प्रतिज्ञा कर लेता है और राष्ट्र की सेवा में स्वयं
देवव्रत नामक हस्तिनापुर का युवराज अपने पिताश्री की प्रसन्नता के लिए आजन्म कुँवारा रहकर सत्ताशीर्ष से स्वयं को विरत कर देने की प्रतिज्ञा कर लेता है और राष्ट्र की सेवा में स्वयं को खपा देता है | इसी कारण इतिहास में वह भीष्म पितामह के नाम से प्रसिद्ध हो जाता है | ठीक ऐसा ही उदाहरण मेवाड़ के राजवंश में महाराणा लाखा के पुत्र युवराज चूण्डा ने प्रस्तुत किया है | पिता के मन में आए विवाह के रंग को पढ़कर स्वयं के वाग्दान हेतु प्रस्तावित राजवंशी युवती के साथ अपने पिताश्री का विवाह करा देता है और परिणाम स्वरुप भावीनृपति बनने की संभावनाओं को सदा के लिए तिलान्जली दे देता है और माटी के प्रति सदा समर्पित रहता है | राजनीतिक उठापटक के क्रम में उसे देश से निष्कासन का अभिशाप भी भोगना पड़ता है | उसकी अनुपस्थिति में नई रानी से उत्पन्न लाखा के पुत्र महाराणा मोकल की हत्या और चूण्डा के भाई राघवदेव की हत्याओं से विचलित मोकल पुत्र महाराणा कुम्भा के आमंत्रण पर चूण्डा पुनः मेवाड़ में आता है और देश को निष्कटक करने में संलग्न हो जाता है |
मेवाड़ के उसी भीष्मपितामह के जीवन के कतिपय पहलुओं को इस ग्रंथ में ग्रंथित किया गया है | इतिहास साक्षी है कि अवसर आने पर भी श्री चूण्डा के वंशजों ने कभी भी मेवाड़ के सिंहासन को हथियाने का विचार तक नहीं किया | वंश प्रमुख की प्रतिज्ञाओं का परिपालन आज तक चूण्डावत क्षत्रिय समाज करता आ रहा है |
पद्मिनी के जौहर के बाद चित्तौड़गढ़, दिल्ली सल्तनत के अधिकार में आ गया| राजनैतिक घटनाक्रम में चित्तौड़गढ़ को जालौर के राजवंशी मालदेव को ठेके पर दे दिया गया| इधर मेवाड़ में फैली अराजकता
पद्मिनी के जौहर के बाद चित्तौड़गढ़, दिल्ली सल्तनत के अधिकार में आ गया| राजनैतिक घटनाक्रम में चित्तौड़गढ़ को जालौर के राजवंशी मालदेव को ठेके पर दे दिया गया| इधर मेवाड़ में फैली अराजकता, पारिवारिक कलह एवं नागरिकों की कठिनाईयों को हल करने में प्रवृत युवा महाराणा हमीर को सामन्तो की उदासीनता के कारण निराशा का समय देखना पड़ा| इन्ही निराशाओं के क्षणों में देवी बरबड़ी नामक तपस्विनी ने अपने सुझावों द्वारा महाराणा हमीर को प्रत्याक्रमण हेतु तत्पर किया| चित्तौड़गढ़ में बैठे मालदेव ने आक्रमणों से त्रस्त होकर अपनी पुत्री का विवाह हमीर से करा कर शांति स्थापना की| इसी शांति काल में हमीर ने अपनी शक्ति बढाकर चित्तौड़गढ़ पर अधिकार कर लिया| पराभूत मालदेव के पुत्र जयसिंह ने अपने प्रभाव से तत्कालीन दिल्ली सुल्तान मुहम्मद तुगलक को साथ लेकर ससैन्य मेवाड़ में प्रवेश किया| सिंगोली गॉंव में हुए इस युद्ध में तुगलक बंदी बनाया गया और ले-देकर तीन माह बाद उसे छोड़ दिया गया| इस विजय की प्रसन्नता एवं देवी बरबड़ी की स्मृति में महाराणा हमीर ने चित्तौड़गढ़ में अन्नपूर्णा मंदिर बनवाया| जौहर की राख जिसे विरासत में मिली उस हमीर द्वारा मन्दिर के शिखर निर्माण तक की यात्रा को इस उपन्यास में उकेरने का सशक्त प्रयास किया गया है|
इतिहास के पन्ने, इस्लाम के भारत में प्रवेश के आगे पीछे के दशकों की अवधि में
घटी, जनमानस को त्रस्त करने वाली घटनाओं को लेकर अधिक मुखर नहीं है| उस
कालखंड में पश्चिमी भारतीय
इतिहास के पन्ने, इस्लाम के भारत में प्रवेश के आगे पीछे के दशकों की अवधि में
घटी, जनमानस को त्रस्त करने वाली घटनाओं को लेकर अधिक मुखर नहीं है| उस
कालखंड में पश्चिमी भारतीय आँचल सुलगता रहा, सिसकता रहा और विवश होकर
श्री राम के पथ से रहीम के मार्ग की ओर घकेला जाता रहा, किन्तु शेष भारत के
शासकों के कानों में जूं तक नहीं रेंगी| शासक वर्गों की कछुआवृति और कतिपय बौद्धों
के अहं की परतों में दबे जनसामान्य के नि:श्वासों की आहंट की अनुगूँज ने, सिद्ध
स्थिति तक पहुँचे, माटी से उभरे एक सिद्ध संत को इस सीमा तक उद्वेलित कर
दिया कि उसके संकेतों पर गोत्र और स्वार्थ की कमजोरियों से बंधे भीनमाल, कन्नोज
एवं चित्तौडगढ़ जैसे राज्यों में सत्ता परिवर्तन करवाया गया| सांभर, जैसलमेर, कच्छ,
भीनमाल, चित्तौड़, अजयमेरु के युवकों की एक सम्मिलित सेना का गठन कराया
गया और उसका नैतृत्व सौपा गया चित्तोडगढ के एक महत्वा कांक्षी किन्तु अति
विनम्र युवा नृपति को| सेना ने पश्चिम की ओर से बढ़ रही हरी आंधी के प्रवाह को
इस सीमा तक कुचला कि जो इस्लाम कुछ ही वर्षों में उत्तरी अफ्रीका को लील गया,
उसे तीनसो वर्षों तक के वल सिधं प्रांत में ही कदमताल करना पड़ा और वह शषे भारत
की और आगे नहीं बढ़ पाया|
इतिहास एवं साहित्य की पुस्तकों मेँ छितराए साक्ष्यों कें आधार पर महाराज हर्ष कें
बाद की समयावधि में भारतवर्ष की राजनैतिक हलचलों की समीक्षा कर उस कालखंड
के महर्षि श्री हारीत ओर उनके शिष्य श्री बप्पा रावल द्वा रा जनहित मेँ किए गए
प्रयत्नो कों औपन्यासिक सूत्रो मेँ बांधने की सफल परिणति है यह कृति, “महर्षि श्री
हारित एवं श्री बप्पारावल”| इस विषय पर देश का यह प्रथम शोधपरक उपन्यास है|
Important Points About the Book:
वे विशेष प्रकरण जो इस उपन्यास में सम्मिलित है-
- महाराजा हर्ष के राज्य कवि श्री बाणभट्ट की गुजरात यात्रा
- युवा साधक श्री हारीत से बाणभट्ट की भेंट
- साधक श्री हारीत का कायावरोहण (लकुलीश संप्रदाय का केंद्र) में अध्ययन
- श्री हारीत की भारत यात्रा –
- तिरुहुत पर बौद्ध आक्रमण और भारत में बौद्दों के बारे में नफरत
- श्री हारीत की पश्चिमी भारत की यात्रा| इस्लामी आक्रमण की आंहट |
- सिंध नरेश श्री चचदेव एवं श्री दाहर से श्री हारित की भेंट और तत्कालीन सिंध की समस्याएँ
- श्री हारीत द्वारा जनसामान्य के हितों के लिए सेना का गठन
- श्री हारीत कवि श्री माघ एवं कुमारिल भट्ट
- भीनमाल में सत्ता परिवर्तन / कन्नोज में सत्ता परिवर्तन
- बप्पारावल का गुप्तरूप से संरक्षण /नागदा के पुरोहित की भूमिका
- नागदा के पुरोहित, श्री हारीत एवं बप्पारावल (कालभोज)
- मुहम्मद बिनकासिम की विजय , जन पलायन, और श्री हारीत का योगदान
- चित्तोड़ पर आक्रमण, बप्पा के द्वारा आक्रमण को कुचलना
- बप्पा के नैतृत्व में पश्चिमी राज्यों की सम्मिलित सेना का गठन
- बप्पा का सैन्य अभियान
- बप्पा का खुरासान में विवाह
- देवल की सभा और देवल स्मृति
- बप्पा द्वारा वल्लभी में सत्ता परिवर्तन
- बप्पा का CHITTUOD चित्तौड़ विजय के बाद चित्तौड़ आगमन
बप्पा द्वारा सन्यास ग्रहण
Parshuram is a mythological character. His activities are mentioned in almost all the Puranas. The following points have been included in the novel.
The size of India in Parshuram’s time:Major rulers of that timeThe causes of the rift between the Brahmans and the KshatriyasRishis and their roleThe activities of Parshuram.Some of the sketches are about
Parshuram’s voyage towards West Asia.Preparation of war against Sahasrarjuna in Aravalli Hills.WaParshuram is a mythological character. His activities are mentioned in almost all the Puranas. The following points have been included in the novel.
The size of India in Parshuram’s time:Major rulers of that timeThe causes of the rift between the Brahmans and the KshatriyasRishis and their roleThe activities of Parshuram.Some of the sketches are about
Parshuram’s voyage towards West Asia.Preparation of war against Sahasrarjuna in Aravalli Hills.War SituationDeath of Jamdagni.Parshuram’s help to the Tibetans.Parshuram’s donation of the total land he acquired to Rishis.His voyage to South India and the invasion of Kalikeyas.His meeting with Lord RamHis role as a teacherHis disciples—Bhisma, Drona and Karna—the heroes of MahabharatHis fight with Bhisma PitamahHe attempts at avoiding the Kurukshetra War.Are you sure you want to close this?
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