रास्ते ख़तम हुए नहीं है बदले के कहत अब भी बक्की है खून की हर उस छाप की जो महफिल से होती है गुजराती है और सयाद इसकी रिवायत भी बदलने वाली है ............
यह सिर्फ एक कहानी नहीं है, यह उन दो आत्माओं का विद्रोह है जिन्हें कब्र की परंपरा एक खचाखच भरी सभा में मिली है, कुछ हद तक वह भी प्यार और दोस्ती के बदले।
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