दर्द का सागर ये मेरी जिंदगी की पहली पुस्तक है। जिसमें कहानी संग्रह के रूप में लेखन किया गया है और बताया गया है कि दर्द के साथ-साथ हम अपनी जिंदगी में क्या-क्या महसूस करते हैं और कैसे मजबूती के साथ रहना सीखते हैं? ये बताया गया है।
इस पुस्तक को लिखने की प्रेरणा मुझे किसी गुरु या अपने या किसी बाहरी इंसान से नहीं मिली। ये लिखने की प्रेरणा तो मुझे मेरे दर्द से मिली है।
मेरा दर्द आज भी मेरी जिंदगी में 14 सालों से मेरे साथ ही है। कहते हैं कि लोग दर्द में हार जातें हैं,कुछ कर नहीं पाते हैं। मगर मैंने अपनी पूरी पढ़ाई अपने दर्द के साथ की। यहां तक कि लोगों ने मुझे पढ़ाई छोड़ने को कहा मगर मैंने पढ़ाई ना छोड़कर कभी हार नहीं मानी। आगे बढ़ती चली गई और लोगों को मैंने ग़लत साबित किया कि दर्द में कभी हारते नहीं बल्कि इस दुनिया में रहना और जीतना दोनों ही सीखा जाता है। मैंने दर्द को कभी दर्द ना समझकर बल्कि अपना साथी बनाकर लिखना सीख लिया। मेरे दर्द ने आज मुझे इतना लिखना सिखा दिया है कि जब लोग कहते हैं कि आप इतने भाव से, इतनी गहराई से और इतने दर्द से भरे मजबूत शब्द कहां से लाकर लिखती हैं। तब मुझे अपना दर्द बुरा ना लगकर बल्कि अच्छा लगता है। क्योंकि दर्द ने ही मुझे ना हराकर बल्कि लिखना सिखा दिया और लोगों की नज़र में एक अच्छी नयी लेखिका बना दिया। मेरे दर्द ने मुझे हर वक्त मजबूत बनाया और मजबूर ना बनाकर बल्कि मजबूत रहना सिखाया। अपनों के साथ-साथ इस दर्द ने भी मुझे कभी कमजोर नहीं पड़ने दिया। असल में जिंदगी कैसे जीते हैं? ये मुझे मेरे दर्द-ए-गम ने ही सिखा दिया। इस दर्द की वजह से ही मेरी आज थोड़ी ही सही पर खुद की मेरी पहचान है।