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"It was a wonderful experience interacting with you and appreciate the way you have planned and executed the whole publication process within the agreed timelines.”
Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palयह उपन्यास श्री राम के वनवास को नितान्त नवीन राजनैतिक अलोक में प्रस्तुत करता है। उपन्यास का आरम्भ राजा दशरथ द्वारा राजकुमार राम के राज्याभिषेक की घोषणा के साथ होता है और तदुपरांत पुस्तक का कथानक एक नया रूप धारण कर लेता है। उपन्यास की कथा विभिन्न सम-विषम मार्गों से चलते हुये कहानी को एक नये स्वरुप में पाठकों के सम्मुख उद्घाटित करती है और अंततोगत्वा रावण के वध पर जा कर समाप्त होती है। उपन्यास की भाषाशैली अत्यंत रोचक है और भावों का यथार्थ निरूपण करती है।
लेखक ने अपनी कल्पनाशीलता एवं रचनात्मकता का अद्भुत संगम किया है। इस बात का विशेष ध्यान रखा गया है कि वर्तमान काल के पाठकों के समक्ष यह रामकथा प्रस्तुत करते समय उसमे नवीनता तो अवश्य हो परन्तु कथा के मूल चरित्र में कोई परिवर्तन न आये। इस कारण घटनाओं की विवेचना बड़ी ही सुरुचिपूर्ण हो कर उभरी है। यह बात मन को आनंद तो देती ही है साथ ही यह भी इंगित करती है कि दो युग व्यतीत हो जाने के उपरान्त भी रामकथा के लेखन में अप्रतिम संभावनायें हैं और इसके अन्वेषण में अब भी कोई विराम नहीं लगा है। यही वह तथ्य है जो राम की सर्वकालिक प्रासंगिकता को सिद्ध करता है।
राम के वनगमन के पीछे के राजनीतिक रहस्य, वन में उनके द्वारा किये गये प्रयास, ऋषि समाज के प्रति उनकी शपथबद्धता, महर्षियों से प्राप्त ज्ञान व अनुभव का उपयोग, किष्किन्धा का सत्ता परिवर्तन, दण्डकारण्य का युद्ध, वन में राम के सहायकों का वर्णन, सीता की खोज, सेतु-बंधन और अंततोगत्वा रावण के साथ राम का युद्ध; सब कुछ आपको पुस्तक से बाँध कर रखने में सक्षम है। घटनाओं का प्रस्तुतीकरण अनुपम, अनोखा और बुद्धि से ग्रहणीय है। उपन्यास की वर्णन शैली अति सक्षम है।
यह निश्चय ही एक पढने योग्य उपन्यास है
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सत्येन श्रीवास्तव एक लेखक, साहित्यकार, लाइफ कोच, पैरेंटिंग विशेषज्ञ तथा प्रेरक वक्ता के रूप में जाने जाते हैं। विज्ञानं विषय से स्नातक के पश्चात उन्होंने प्रबन्धन के क्षेत्र में परा-स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की साथ ही विधि-स्नातक की डिग्री भी प्राप्त की। एक लम्बे समय तक कॉर्पोरेट सेक्टर में अपनी सेवायें देने के उपरान्त उन्होंने अपना व्यवसाय आरम्भ किया और उनके अनुसार इस कारण उन्हें लेखन एवं साहित्य साधना हेतु पर्याप्त समय और अवसर प्राप्त हुआ।
उनकी इस अवधि में की गयी साधना का परिणाम उनकी नवीन पुस्तक ‘जय श्री राम’ है। यह हिंदी में लिखा गया एक उपन्यास है। यह पुस्तक श्री राम के वनवास को राजनीती के अलोक में देखती हुयी उसके विभिन्न पक्षों पर प्रकाश डालती है। इस औपन्यासिक कृति का कथानक नितान्त नवीन एवं भिन्न है। लेखक का ऐसा मानना है कि संभवतः इस पृष्ठभूमि पर रचित रामकथा अब तक जनमानस के सम्मुख प्रस्तुत नहीं की गयी है।
इसके पूर्व श्रीवास्तव जी की अन्य पुस्तक ‘एक्स्ट्रा आर्डिनरी पैरेंटिंग’ भी प्रकाशित हो चुकी है। इस पुस्तक में पैरेंटिंग से सम्बंधित अनेक पहलुओं को स्पर्श किया गया है और उन पर अत्यंत विस्तार से चर्चा की गयी है।
वर्तमान समय में लेखक कुछ पौराणिक पात्रों पर शोध करते हुये उन पर पुस्तक रचना हेतु विषय-वस्तु के निर्माण में व्यस्त हैं।
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