यशपाल जी की रचनाओं से गुज़रते हुए ऐसा प्रतीत होता है जैसे जीवन के सूक्ष्म निरीक्षण की अनबुझ अनुभूतियाँ जीवंत होकर रचनाओं में उभर रही हैं। उनकी रचनाएँ जीवन को समग्रता के साथ देखने का आग्रह करती हैं। वे सारे प्रश्न जो कभी न कभी हमारे सामने आकर खड़े हो जाते हैं इस संग्रह में मौजूद हैं।….उन्होंने गरम चाय की एक प्याली में सम्पूर्ण जीवन के तथ्य को समाहित कर दिया है। जीवन का विस्तृत आयाम, उतार-चढ़ाव का अनबुझ द्वन्द और विचारों की अकुलाहट सभी कुछ उन्होंने एक प्याली चाय में ऐसे ढाल दिया है जैसे वे कहना चाहते हों कि अगर हम जीवन को सही अर्थों में समझ कर आत्मसात कर लें तो जीवन गरम चाय की तरह सरल, तरल और आनंदमय हो जाए।
छोटे-छोटे दोष खलेंगे
शुरू-शुरू में होठ जलेंगे
आरंभिक असुविधा होगी
फिर आदत पड़ जाने वाली
जीवन गरम चाय की प्याली
यशपाल जी की रचनाओं में जीवन के यथार्थ का अद्भुत दर्शन मिलता है। उनके जीवन-दर्शन में कल्पना की मनमोहक रंगोली नहीं बल्कि पुरुषार्थ का उद्घोष है जो जीवन के अनछुए आयामों को प्रतिपादित करता है। जीवन को देखने का उनका नजरिया बिल्कुल स्पष्ट है। उनके कहन में विश्वास का प्रखर स्वर गुंजायमान होता है :
मत किसी पदचाप से आगे बढ़ो तुम,
रोज अपने आप से आगे बढ़ो तुम,
और पैमाने सभी के व्यक्तिगत हैं,
दूसरों की नाप से आगे बढ़ो तुम।
प्रस्तुत संकलन को जीवन दर्शन का अद्भुत दस्तावेज कहें तो गलत नहीं होगा। सहज और सरल भाषा में गूढ़ बातों की अभिव्यंजना यश जी के लेखनी की विशेषता है।
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ, कवि,लेखक,संपादक
पूर्व सदस्य : टेलीफोन सलाहकार समिति,भारत सरकार।
अध्यक्ष : साहित्य साधक मंच ,बेंगलुरु