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"It was a wonderful experience interacting with you and appreciate the way you have planned and executed the whole publication process within the agreed timelines.”
Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Pal
'हिंदी गीता काव्य' श्रीमद्भगवद्गीता का सरलतम काव्य रूपांतरण है, जो हिंदी की न्यूनतम जानकरी रखने वाले पाठक को भी आसानी से समझ आएगा। इसका उद्देश्य गीता को सरल भाषा और रोचक काव्य के
'हिंदी गीता काव्य' श्रीमद्भगवद्गीता का सरलतम काव्य रूपांतरण है, जो हिंदी की न्यूनतम जानकरी रखने वाले पाठक को भी आसानी से समझ आएगा। इसका उद्देश्य गीता को सरल भाषा और रोचक काव्य के रूप में उन सब लोगों तक पहुंचाना है जो गीता पढ़ना तो चाहते हैं लेकिन भाषा व शैली की कठिनाई के कारण ऐसा नहीं कर पाते और उन तक भी जो इसे एक मज़हबी ग्रंथ समझकर इससे दूरी बना लेते हैं । पुस्तक से कुछ दोहे:
भीष्म और गुरु द्रोण हैं, पूजनीय श्रीमान।
इन पर केशव किस तरह, तानूं तीर कमान।।
आत्मा अविनाशी सदा, मिटता सिर्फ शरीर।
फिर क्यों मरने से डरें, युद्ध करो तुम वीर।।
मृत्यु मिले तो स्वर्ग है, विजय मिले तो राज्य।
निश्चित होकर युध्द कर, चिंता तेरी त्याज्य।।
श्रीमद्भगवद्गीता भारतीय संस्कृति में एक ऊँचा स्थान रखती है। कुरुक्षेत्र के मैदान में कृष्ण और अर्जुन के बीच का यह संवाद भारतीय दर्शन की मानो एक सम्पूर्ण अभिव्यक्ति है। जीवन म
श्रीमद्भगवद्गीता भारतीय संस्कृति में एक ऊँचा स्थान रखती है। कुरुक्षेत्र के मैदान में कृष्ण और अर्जुन के बीच का यह संवाद भारतीय दर्शन की मानो एक सम्पूर्ण अभिव्यक्ति है। जीवन में संघर्ष है और युद्ध की स्थिति संघर्ष की पराकाष्ठा है। अगर युद्ध अपनों के बीच हो तो स्थिति और भी गंभीर हो जाती है। अर्जुन इसी परिस्थिति में है। उसके सामने वो हैं जिनकी अंगुली पकड़कर उसने चलना सीखा है। उसका असमंजस, उसकी पीड़ा स्वाभाविक है; उसके प्रश्न उचित हैं। उसे तलाश है ऐसे गुरु की जो उसको इस अवसाद से निकाल सके। कृष्ण इस भूमिका को निभाते हैं और उसे अवसाद से निकालकर उस स्थिति तक पहुंचाते हैं कि वह स्वधर्म और स्वाध्याय के मार्ग पर चलने के लिए तैयार हो जाता है। जो संवाद युद्ध की स्थिति में मार्ग दिखा सकता है वह समाज में हर व्यक्ति को उसके व्यक्तिगत संघर्ष में, अवसाद में अवश्य ही मार्ग दिखा सकता है। गीता की महत्ता इसी कारण ज्यादा है कि वह पर्वत की गुफाओं में बैठे किसी तपस्वी का दर्शन नहीं है बल्कि संघर्ष के बीच से निकला दर्शन है। इसीलिए इसकी वास्तविक जीवन में अधिक सार्थकता है। यह पुस्तक इस दर्शन को सरल भाषा और रोचक दोहा शैली में आम पाठक तक पहुँचाने का एक प्रयास है।
यशपाल जी की रचनाओं से गुज़रते हुए ऐसा प्रतीत होता है जैसे जीवन के सूक्ष्म निरीक्षण की अनबुझ अनुभूतियाँ जीवंत होकर रचनाओं में उभर रही हैं। उनकी रचनाएँ जीवन को समग्रता के साथ देखन
यशपाल जी की रचनाओं से गुज़रते हुए ऐसा प्रतीत होता है जैसे जीवन के सूक्ष्म निरीक्षण की अनबुझ अनुभूतियाँ जीवंत होकर रचनाओं में उभर रही हैं। उनकी रचनाएँ जीवन को समग्रता के साथ देखने का आग्रह करती हैं। वे सारे प्रश्न जो कभी न कभी हमारे सामने आकर खड़े हो जाते हैं इस संग्रह में मौजूद हैं।….उन्होंने गरम चाय की एक प्याली में सम्पूर्ण जीवन के तथ्य को समाहित कर दिया है। जीवन का विस्तृत आयाम, उतार-चढ़ाव का अनबुझ द्वन्द और विचारों की अकुलाहट सभी कुछ उन्होंने एक प्याली चाय में ऐसे ढाल दिया है जैसे वे कहना चाहते हों कि अगर हम जीवन को सही अर्थों में समझ कर आत्मसात कर लें तो जीवन गरम चाय की तरह सरल, तरल और आनंदमय हो जाए।
छोटे-छोटे दोष खलेंगे
शुरू-शुरू में होठ जलेंगे
आरंभिक असुविधा होगी
फिर आदत पड़ जाने वाली
जीवन गरम चाय की प्याली
यशपाल जी की रचनाओं में जीवन के यथार्थ का अद्भुत दर्शन मिलता है। उनके जीवन-दर्शन में कल्पना की मनमोहक रंगोली नहीं बल्कि पुरुषार्थ का उद्घोष है जो जीवन के अनछुए आयामों को प्रतिपादित करता है। जीवन को देखने का उनका नजरिया बिल्कुल स्पष्ट है। उनके कहन में विश्वास का प्रखर स्वर गुंजायमान होता है :
मत किसी पदचाप से आगे बढ़ो तुम,
रोज अपने आप से आगे बढ़ो तुम,
और पैमाने सभी के व्यक्तिगत हैं,
दूसरों की नाप से आगे बढ़ो तुम।
प्रस्तुत संकलन को जीवन दर्शन का अद्भुत दस्तावेज कहें तो गलत नहीं होगा। सहज और सरल भाषा में गूढ़ बातों की अभिव्यंजना यश जी के लेखनी की विशेषता है।
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ, कवि,लेखक,संपादक
पूर्व सदस्य : टेलीफोन सलाहकार समिति,भारत सरकार।
अध्यक्ष : साहित्य साधक मंच ,बेंगलुरु
'आंखिन देखी' हिंदी काव्य जगत के यशस्वी हस्ताक्षर यशपाल सिंह यशजी का नव्यतम काव्य संग्रह है। इस संग्रह की कुछ कविताओं को पढ़ने के बाद मैं तो इसी निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि यशपाल
'आंखिन देखी' हिंदी काव्य जगत के यशस्वी हस्ताक्षर यशपाल सिंह यशजी का नव्यतम काव्य संग्रह है। इस संग्रह की कुछ कविताओं को पढ़ने के बाद मैं तो इसी निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि यशपाल सिंह यश जी समय सापेक्ष संवेदनाओं और वैज्ञानिक चेतना से लैस एक ऐसे कवि हैं जो अपने आसपास होने वाली हर हलचल और घटना को अपनी सतर्क दृष्टि से देखते हैं और फिर उन्हें बड़ी शाइस्तगी से अपनी कविता में ढाल देते हैं। सारा-का-सारा परिवेश इनकी कविताओं के आंगन में टहलकदमी करता हुआ दिखाई देता है। हमारे परिवेश में जो विसंगति है वह कितने सलीके से यश जी के काव्य-कथन की वक्रोक्ति बन जाती है। वह लहजा और कहन ही यश जी को कवियों की भीड़ से अलग अपनी एक चमकीली पहचान के साथ अलग खड़ा कर देता है। तभी तो वह कह पाते हैं कि-
'फिर से हुआ गुनाह, गई और एक जान
उत्सुक हैं पत्रकार कि हिंदू या मुसलमान'
पंडित सुरेश नीरव- चिंतक, कवि, पत्रकार
'हिंदी गीता काव्य' श्रीमद्भगवद्गीता का सरलतम काव्य रूपांतरण है, जो हिंदी की न्यूनतम जानकरी रखने वाले पाठक को भी आसानी से समझ आएगा। इसका उद्देश्य गीता को सरल भाषा और रोचक काव्य के
'हिंदी गीता काव्य' श्रीमद्भगवद्गीता का सरलतम काव्य रूपांतरण है, जो हिंदी की न्यूनतम जानकरी रखने वाले पाठक को भी आसानी से समझ आएगा। इसका उद्देश्य गीता को सरल भाषा और रोचक काव्य के रूप में उन सब लोगों तक पहुंचाना है जो गीता पढ़ना तो चाहते हैं लेकिन भाषा व शैली की कठिनाई के कारण ऐसा नहीं कर पाते और उन तक भी जो इसे एक मज़हबी ग्रंथ समझकर इससे दूरी बना लेते हैं । पुस्तक से कुछ दोहे:
भीष्म और गुरु द्रोण हैं, पूजनीय श्रीमान।
इन पर केशव किस तरह, तानूं तीर कमान।।
आत्मा अविनाशी सदा, मिटता सिर्फ शरीर।
फिर क्यों मरने से डरें, युद्ध करो तुम वीर।।
मृत्यु मिले तो स्वर्ग है, विजय मिले तो राज्य।
निश्चित होकर युध्द कर, चिंता तेरी त्याज्य।।
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