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"It was a wonderful experience interacting with you and appreciate the way you have planned and executed the whole publication process within the agreed timelines.”
Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Pal'आंखिन देखी' हिंदी काव्य जगत के यशस्वी हस्ताक्षर यशपाल सिंह यशजी का नव्यतम काव्य संग्रह है। इस संग्रह की कुछ कविताओं को पढ़ने के बाद मैं तो इसी निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि यशपाल सिंह यश जी समय सापेक्ष संवेदनाओं और वैज्ञानिक चेतना से लैस एक ऐसे कवि हैं जो अपने आसपास होने वाली हर हलचल और घटना को अपनी सतर्क दृष्टि से देखते हैं और फिर उन्हें बड़ी शाइस्तगी से अपनी कविता में ढाल देते हैं। सारा-का-सारा परिवेश इनकी कविताओं के आंगन में टहलकदमी करता हुआ दिखाई देता है। हमारे परिवेश में जो विसंगति है वह कितने सलीके से यश जी के काव्य-कथन की वक्रोक्ति बन जाती है। वह लहजा और कहन ही यश जी को कवियों की भीड़ से अलग अपनी एक चमकीली पहचान के साथ अलग खड़ा कर देता है। तभी तो वह कह पाते हैं कि-
'फिर से हुआ गुनाह, गई और एक जान
उत्सुक हैं पत्रकार कि हिंदू या मुसलमान'
पंडित सुरेश नीरव- चिंतक, कवि, पत्रकार
यशपाल सिंह यश
उत्तर प्रदेश में ज़िला मुज़फ़्फ़रनगर के गाँव भंगेला के रहने वाले यशपाल सिंह 'यश' 37 साल की बैंक सेवा के दौरान देश के विभिन्न भागों में रहे तथा 2016 में उपमहाप्रबंधक के पद पर रहते हुए सेवानिवृत्त हुए। उनकी कविताओं का एक संग्रह 'मंजर गवाह हैं' शीर्षक से अप्रैल 2016 में प्रकाशित हुआ। अभी हाल ही में उनकी 'हिंदी गीता काव्य' नाम से दूसरी पुस्तक प्रकाशित हुई है। इस पुस्तक में गीता के सभी श्लोकों को सरल हिंदी दोहों के रूप में प्रस्तुत किया गया है। उन्होंने विज्ञान कवि के रूप में अपनी अलग पहचान बनाई है तथा वो भारत सरकार द्वारा आयोजित विज्ञान काव्य सम्मेलन में पिछले तीन वर्षों से लगातार शिरकत कर रहे हैं। उनकी कविताओं का दूरदर्शन तथा आकाशवाणी से समय-समय पर प्रसारण होता रहा है।
यश जी की रचनाएँ अनुभूतियों के गहन धरातल पर प्रस्फुटित होती हैं और उनमें मानवीय संवेदनाओं का सूक्ष्म समावेश होता है। यही कारण है कि उन्हें पढ़कर ऐसा लगता है जैसे हमारे मन की अनकही बातें शब्दों को ओढ़कर हमारे समक्ष खड़ी हो गयी हैं। परिवेश की गूँगी आहटों को भी समेटकर शब्दों में ढाल देना यशपाल यश जी की लेखनी की सबसे बड़ी विषेशता है। उनकी रचनाओं में मैंने हमेशा समय की प्रमाणिकता का उद्घोष सुना है।- ज्ञान चंद मर्मज्ञ, लेखक, कवि, संपादक
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