इस किताब में वो इश्क है, जो लॉक डाउन के समय जेठ की तपती दोपहरी में घरों से बाहर आ गया। जब लोग घरों में थे तो वे किरदार एक नया संसार रच रहे थे, वो भी तब जब लोग कोरोना जैसी महामारी के खौफ से घरों में कैद थे। इसमें इश्क की ऐसी ही दस्तानें हैं, जो उनके संघर्ष, उसकी सफलता और उनकी विरह-वेदना को बताती हैं। ऐसी निशानियाँ हैं, जो यादगार हो गईं। सफर और उसका हर लम्हा इश्क-इश्क हो गया। ये पल और ये निशानियाँ उन किरदारों के जीवन में अद्भुत संसार का सृजन करती हैं। ये निशानियाँ हर पल उनके जीवन में नया संगीत लाती हैं। इन्हीं के दम पर उनका इश्क इठलाता है तो कभी नृत्य करता है। रूठता है तो कभी मानता है। इश्क खुशी के महोत्सव में नाचता भी है और विरह की वेदना में तड़पता भी है। यही इसकी खूबसूरती है।