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"It was a wonderful experience interacting with you and appreciate the way you have planned and executed the whole publication process within the agreed timelines.”
Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palलेखक और उनका परिवार सनातनी परंपराओं में गहराई से जुड़े हुए हैं। उन्होंने सनातन धर्म और भ्राता पर एक पुस्तक लिखने का सपना देखा था। आज, जब समाज में नकली आधुनिकता का अंधकार फैला हुआ है, यह पुस्तक एक प्रकाशस्तंभ की तरह उभरती है। लेखक का मानना है कि आज की नई पीढ़ी, विशेषकर सनातनी हिन्दू युवक और युवतियां, अपनी पहचान खोते जा रहे हैं। इस पुस्तक का उद्देश्य उन्हें उनके मूल्यों और संस्कृति से पुनः जोड़ना है।
लेखक ने विभिन्न धार्मिक ग्रंथों, उपनिषदों, वेदों और प्राचीन पुस्तकों से संदर्भ लिया है। इस पुस्तक में यह स्पष्ट किया गया है कि सनातन धर्म विश्व का पुरातन धर्म है, जो शाश्वत सत्य और कर्तव्य का पालन करने की प्रेरणा देता है। यह पुस्तक संक्षेप में सनातन धर्म और भ्राता के महत्व को दर्शाती है, जिससे पाठक इन विषयों की गहराई को समझ सकें। लेखक ने वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों को सनातन धर्म के बारे में लाभप्रद जानकारी देने का प्रयास किया है, ताकि वे अपनी जड़ों से जुड़े रहें और अपनी संस्कृति पर गर्व महसूस करें।
पुस्तक को दो भागों में विभाजित किया गया है - पहला भाग सनातन धर्म पर केंद्रित है, जो इसके शाश्वत सत्य और कर्तव्यों को उजागर करता है, जबकि दूसरा भाई-भाई के रिश्ते पर केंद्रित है, जो इस रिश्ते की महत्ता और उसकी गहराई को समझाता है। यह पुस्तक न केवल धार्मिक ज्ञान प्रदान करती है, बल्कि सामाजिक रिश्तों को भी मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास है, जिससे पाठक अपने परिवार और समाज के साथ बेहतर संबंध बना सकें।
दुर्गेश पांडेय
दुर्गेश कुमार पांडेय का जन्म जमशेदपुर, झारखंड में हुआ। वे एक धार्मिक ब्राह्मण परिवार में पले-बढ़े, जहां उनकी माता, श्रीमती पार्वती देवी, और पिता, स्वर्गीय त्रिपुरारी पांडेय, दोनों ही सनातन धर्म के अनुयायी थे। उनका परिवार सनातन धर्म की परंपराओं का पालन करता है।
दुर्गेश पिछले पंद्रह (15) वर्षों से अपने परिवार के साथ दिल्ली में रह रहे हैं। वे वकालत के पेशे में हैं और एक मानव संसाधन प्रबंधन फर्म भी चलाते हैं। अपनी पहली किताब रोमांच और रहस्य पर लिखने के बाद, उन्होंने "सनातन धर्म और भाई" नामक नई किताब लिखी है।
दुर्गेश को इस किताब को लिखने की प्रेरणा आधुनिक युग में सनातन धर्म की प्रासंगिकता को उजागर करने से मिली। उनका उद्देश्य भाईचारे, पारंपरिक और धार्मिक प्रथाओं, और आधुनिक व पारंपरिक मूल्यों के संतुलन के महत्व को दर्शाना था। उन्होंने न्याय और नैतिकता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को भी रेखांकित किया।
इस पुस्तक के माध्यम से दुर्गेश ने परिवार और धर्म के प्रति नई दृष्टि प्रदान करने का प्रयास किया है, जिससे जीवन समृद्ध हो सके। यह पुस्तक आध्यात्म और परिवार के मूल्यों की गहराइयों में ले जाती है, जैसे बगीचे में खिले फूलों की खुशबू मन को महकाती है।
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