समाज का निर्माण व्यक्ति से होता है और व्यक्तियों के आचार -विचार, व्यवहार -विनिमय तथा विभिन्न क्रियाकलापों से समाज का ताना-बाना ,उनकी जीवनशैली, उनके सामाजिक समीकरण बनते बिगड़ते रहते हैं! आज विश्व में आधुनिकीकरण, औद्योगिकरण ,भूमंडलीकरण तथा अन्य कारणों से मानवीय कार्य में जो बदलाव आए हैं उसका प्रभाव समाज पर पड़ रहा है !आज इस बात की अति आवश्यकता है कि सुखद तथा समृद्धि मय जीवन के लिए मनुष्य शाश्वत मानवीय मूल्यों को यथावत बनाए रखें तथा बदलते परिवेश के साथ अपने आने वाले कल के साथ बीते कल तथा आज में सामंजस्य बनाए रखें।
समाजशास्त्र की व्यवहारिक उपयोगिता इस बात से स्पष्ट होती है कि विभिन्न क्षेत्रों में विकास कार्यक्रम को क्रियान्वित करने में समाजशास्त्रीय ज्ञान का उपयोग व्यहार में किया जा रहा है। इस पुस्तक में समाज की समस्याओं और उनके निराकरण को निबंध के रूप में प्रस्तुत किया गया है। यह पाठ्यपुस्तक मध्य प्रदेश के स्नातकोत्तर समाजशास्त्र के तृतीय सेम के विद्यार्थियों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी ।वहीं दूसरी ओर प्रतियोगी परीक्षा में बैठने वाले अभ्यार्थी भी इससे लाभान्वित होंगे। विद्यार्थियों की सुविधा हेतु विषय सामग्री के विभिन्न अध्यायों के अंतर्गत शीर्षक एवं उपशीर्षक में विभाजित किया गया है।प्रस्तुत समाजशास्त्रीय निबंध में समाज के सभी पक्षों को समाहित किया है जो भविष्य में शोधार्थियों के लिए भी उपयोगी सिद्ध होगा इस प्रकार यह पुस्तक समाज से संबंधित अनेक सिद्धांतों एवं व्यावहारिक बिंदुओं पर प्रकाश डालती है।