इस संग्रह की कविताएं पाठकों से मुखातिब होकर संवाद करती हैं । मनुष्य और मनुष्य की जिजीविषा की बात करती हैं ।समाज-व्यवस्था को बदलने को तत्पर कविताएं सार्थक समाज की परिकल्पना के लिए आशान्वित हैं । कविताएं प्रश्न भी करती हैं और बदलाव की अपेक्षा भी । कविताओं में हर जगह परिवर्तनकामी मनुष्य दिखता है , जिसकी आंखों में प्रेम है - टूटते संबंधों की पीड़ा है - समाज के सबसे नीचे तबके की कसक है और सबसे अधिक व्यवस्था को बदलने की सोच है। संग्रह की कविताएं पाठकों से सीधे संवाद करने में सक्षम हैं ।