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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Pal
इस संग्रह की लघुकथाएं सामाजिक सरोकारों से जुड़ी हुई हैं और समाज में फैली विसंगतियों की ओर इशारा करती हैं। इन लघुकथाओं के माध्यम से राजनीति से लेकर टूटते व्यक्तिगत संबंधों
इस संग्रह की लघुकथाएं सामाजिक सरोकारों से जुड़ी हुई हैं और समाज में फैली विसंगतियों की ओर इशारा करती हैं। इन लघुकथाओं के माध्यम से राजनीति से लेकर टूटते व्यक्तिगत संबंधों और घोर भौतिकवादी के कारण उपजे अवसरवाद को व्यक्त करने की कोशिश की गई है। लघुकथाएं अपनी लघुता में व्यापकता धारण करती हैं । पेड़ , जंगल, पहाड़ जैसे प्राकृतिक बिंबों के माध्यम से भी लघुकथाओं को रचने का प्रयास किया गया है। इनके अलावा समाज की विद्रूपताओं को भी रेखांकित किया गया है संग्रह की लघुकथाओं में।
इस संग्रह की कविताएं कवि की प्रारंभिक कविताएं हैं। कविताएं उस समय की, जब कवि कविता का ककहरा सीखने के साथ जीवन की जद्दोजहद में जीना भी सीख रहा था । यह वह समय था जब कवि को समाज की विसं
इस संग्रह की कविताएं कवि की प्रारंभिक कविताएं हैं। कविताएं उस समय की, जब कवि कविता का ककहरा सीखने के साथ जीवन की जद्दोजहद में जीना भी सीख रहा था । यह वह समय था जब कवि को समाज की विसंगतियां परेशान करती थीं। विषमता के विरुद्ध लड़ना चाहता था कवि, लेकिन अपने आप को असमर्थ पाता था। किसी आत्मीय को खोकर उदास हो जाता था और किसी के प्रति हृदय में कोमल भावनाओं का संचार होता था। भूख, गरीबी, बेरोजगारी से भरे जीवन में लेखन एक संबल बनकर उपस्थित हो जाता था। घोर निराशा के क्षणों में कविता अंदर का उजास बन जाती थी। यह वह दौर था जब एक वैचारिक आस्था कवि के अंदर विकसित होने लगी थी। करुणा ,प्रेम और मनुष्यता से भरे मनुष्यों की घटती आबादी से कवि चिंतित हो जाता था । कवि विस्थापन के दर्द को भी महसूस कर रहा था । स्थितियों को ना बदल पाने की निराशा भी उसके अंतर्मन तक समाई हुई थी। उसका किशोर मन इस बात से आश्वस्त होता था कि इस विपरीत परिस्थितियों में भी बहुत सारे लोग हैं जो उसके हमक़दम हैं।संग्रह की कविताएं इन्हीं भावों-विचारों के समानांतर चलती हैं और अपने अविकल स्वरूप में भी पाठकों को बांधे रखने में सक्षम हैं।
इस संग्रह की कहानियां तत्कालीन समाज के सरोकारों से जुड़ी हुई हैं और अपने समय को प्रतिबिंबित करती हैं। अधिकांश कहानियां सामाजिक घेरे को तोड़ते हुए नवीन संदेश देती प्रतीत होती ह
इस संग्रह की कहानियां तत्कालीन समाज के सरोकारों से जुड़ी हुई हैं और अपने समय को प्रतिबिंबित करती हैं। अधिकांश कहानियां सामाजिक घेरे को तोड़ते हुए नवीन संदेश देती प्रतीत होती हैं।
ये कहानियां अपने समय में प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं लेकिन अपने काल में इन कहानियों का संग्रह के रूप में प्रकाशन नहीं हो पाया इसलिए इन कहानियों का मूल्यांकन भी उस रूप में नहीं हो पाया जिस रूप में होना चाहिए था । वर्तमान में इसका प्रकाशन शोधार्थियों और कहानी पर काम कर रहे लोगों के लिए उपयोगी होगा। अवध नारायण प्रसाद एक सिद्धहस्त कहानीकार और शब्दचित्र लेखक के अलावा बहुत ही प्रतिष्ठित संपादक- पत्रकार भी थे। इन्होंने वर्षों 'छोटानागपुर दर्पण' जैसे साप्ताहिक पत्र का संपादन भी किया । पत्रकारिता पर शोध कर रहे शोधार्थियों के लिए भी यह संग्रह काफी उपयोगी सिद्ध होगा क्योंकि इस संग्रह के माध्यम से अवध बाबू को एक लेखक के रूप में समझने में सहायता मिलेगी।
इस संग्रह के गीत उम्मीदें जगाते हैं- नयी आशा का संचार करते हैं। ये यथार्थपरक हैं। आज के राजनीतिक परिदृश्य को इन गीतों में खूबसूरती से छंदबद्ध किया गया है। विकास के शोर की असलियत
इस संग्रह के गीत उम्मीदें जगाते हैं- नयी आशा का संचार करते हैं। ये यथार्थपरक हैं। आज के राजनीतिक परिदृश्य को इन गीतों में खूबसूरती से छंदबद्ध किया गया है। विकास के शोर की असलियत और मेहनतकश जनता का जीवन-संघर्ष का वास्तविक चित्रण इन गीतों के माध्यम से किया गया है। सरल शब्दों में सहज ढंग से गंभीर भावों को गीतों में समेटने का सार्थक प्रयास किया गया है। ये गीत अपने समय की आवाज हैंं- जनपक्षीय हैं और श्रम के प्रति प्रतिबद्ध हैं।
संग्रह की ग़ज़लें संघर्ष को प्रेरित करती हैं। व्यवस्था की काली दुनिया के खिलाफ रोशनी की जंग की वकालत करती हैं। जन की पीड़ा को व्यक्त करने का प्रयास करती हैं - सत्ता के तानाशाह
संग्रह की ग़ज़लें संघर्ष को प्रेरित करती हैं। व्यवस्था की काली दुनिया के खिलाफ रोशनी की जंग की वकालत करती हैं। जन की पीड़ा को व्यक्त करने का प्रयास करती हैं - सत्ता के तानाशाह चेहरे को बेनकाब करती है - आजादी , प्रजातंत्र और मनुष्य के हकों के लिए प्रतिरोध का आह्वान करती हैं । पीड़ा, एकाकीपन और हताशा को भी व्यक्त करती हैं ये ग़ज़लें, लेकिन उनसे उबरने के लिए आशा की किरणों की आकांक्षा भी हैं इनमें। प्रेम को जीवन में संघर्ष के साथी के रूप में व्याख्यायित करने का भी प्रयास किया गया है इन ग़ज़लों में।
संग्रह की कविताओं में प्रेम की कोमलता , प्रकृति की व्यापकता , मनुष्य का संघर्ष और उसके माध्यम से रोशनी की कामना है । जीवन से भरी -भरी इन कविताओं में प्रेम अपने विराट स्वरूप में उपस
संग्रह की कविताओं में प्रेम की कोमलता , प्रकृति की व्यापकता , मनुष्य का संघर्ष और उसके माध्यम से रोशनी की कामना है । जीवन से भरी -भरी इन कविताओं में प्रेम अपने विराट स्वरूप में उपस्थित है । मासूमियत से परिपूर्ण इन कविताओं में एक ओर अंधेरे से मुक्ति हेतु सहयोगी के रुप में प्रेम की कामना की गई है वहीं दूसरी ओर जिजीविषा से भरी इन प्रेम कविताओं में मनुष्य का संघर्ष और उन संघर्षों के माध्यम के रूप में प्रेम की सकारात्मक उपस्थिति भी रेखांकित की गयी है ।
इस संग्रह की कविताएं पाठकों से मुखातिब होकर संवाद करती हैं । मनुष्य और मनुष्य की जिजीविषा की बात करती हैं ।समाज-व्यवस्था को बदलने को तत्पर कविताएं सार्थक समाज की परिकल्पना के ल
इस संग्रह की कविताएं पाठकों से मुखातिब होकर संवाद करती हैं । मनुष्य और मनुष्य की जिजीविषा की बात करती हैं ।समाज-व्यवस्था को बदलने को तत्पर कविताएं सार्थक समाज की परिकल्पना के लिए आशान्वित हैं । कविताएं प्रश्न भी करती हैं और बदलाव की अपेक्षा भी । कविताओं में हर जगह परिवर्तनकामी मनुष्य दिखता है , जिसकी आंखों में प्रेम है - टूटते संबंधों की पीड़ा है - समाज के सबसे नीचे तबके की कसक है और सबसे अधिक व्यवस्था को बदलने की सोच है। संग्रह की कविताएं पाठकों से सीधे संवाद करने में सक्षम हैं ।
खोया हुआ आदमी एक लघुकथा संग्रह है जो मौजूदा समाज में व्याप्त राजनीतिक कुटिलता, विसंगतियां , आर्थिक असमानता, बेरोजगारी और उनसे लगातार संघर्ष करते मनुष्य की कथा कहती हैं- मानव जीवन
खोया हुआ आदमी एक लघुकथा संग्रह है जो मौजूदा समाज में व्याप्त राजनीतिक कुटिलता, विसंगतियां , आर्थिक असमानता, बेरोजगारी और उनसे लगातार संघर्ष करते मनुष्य की कथा कहती हैं- मानव जीवन के अंतर्संबंधों के अनसुलझे धागे को सुलझाने का प्रयास करती हैं, साथ ही पाठक को आत्मीयता के साथ समाज के बहुआयामी दृश्य से रूबरू कराती हैं। भावनात्मक क्षरण, टूटते संबंधों और कुटिलता में जी रहा मनुष्य इन लघुकथाओं में हर जगह मौजूद है जो पाठकों को चिंतन की नई दृष्टि देने का प्रयास करता है ।
हँसता है सूत्रधार एक कविता संग्रह है जो हमारे आज के आस पास के परिस्थितियों एवं सामाजिक ढांचों के बिल्कुल अनुरूप है। यह सीधे पाठक के साथ सरल भाषा में संवाद स्थापित करने के साथ साथ
हँसता है सूत्रधार एक कविता संग्रह है जो हमारे आज के आस पास के परिस्थितियों एवं सामाजिक ढांचों के बिल्कुल अनुरूप है। यह सीधे पाठक के साथ सरल भाषा में संवाद स्थापित करने के साथ साथ उनको कविता के सार के साथ स्वयं को जुड़ने में प्रेरित करता है। यहाँ कवि समाज में व्याप्त मुद्दों को काफी आसान शब्दों में संवेदनाओं के साथ उजागर करता है जिनसे पाठक स्वयं को कविता के साथ संलग्न कर पाता है।
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