रचनाओं में 'कवितापन' कितना है ये तो पाठक ही तय करेंगे। इतने वर्षों में मुझे कभी नहीं लगा कि कवि होना कुछ और होना होता है। यानी मुझे सामान्य व्यक्ति से कवि होने की कुछ अलग अनुभूति कभी नहीं हुई। कई संवेदनात्मक घटनाएं, अनुभूति, मान-अपमान जब कभी मेरी सम्वेदनाओं को छूती हैं, झकझोरती हैं तो कोई पंक्ति ज़ेहन में उभर आती रही हैं। उन्हीं का विस्तार रचनाओं के रूप में प्रकट हुआ है। कई बार पंक्तियां बस डायरी में दर्ज रह जाती हैं, वे रचना का रूप नहीं ले पातीं । कु