“देखकर चिलचिलाती धूप, कोई हार कर बैठ जाता है,
पर वह भी कोई मर्द है, जो उसी धूप में चलकर मंजिल पाता है।“
उपर की पंक्तियां इसी पुस्तक से ली गई हैं। और यह पुस्तक इन्ही पंक्तियों के प्रेरणा का परिणाम है। बहुत दिनों से अलग-अलग डायरियों, कापियों के पन्नों पर विभिन्न अवसरों पर घटित होने वाली सम-सामयिकी से प्रेरित होकर छोटी-छोटी कविताए लिखी गई थी। इच्छा थी इन सभी कविताओं को संकलित कर एक पुस्तक का रुप दिया जाए।
‘इक्यावन’ कविताओं के संग्रह का पुस्तक प्रारुप तैयार कर कम्प्युटर-प्रिंटिंग हेतु भेजने के बाद पुस्तक सज-धज कर आपके हाथों में प्रस्तुत है, इस आशा के साथ कि अपनी जिंदगी में ऐसा कुछ अच्छा कर गुजरें कि लोग आप के बारे में अनायास कह उठें –
“औरों के लिए वे पथ प्रदर्शक बन जाते हैं,
बनाकर एक और ‘किर्तीमान, ‘मील के पत्थर’गिने जाते हैं।“
-इसी पुस्तक से
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