प्रिय पाठकों प्रेम जीवन की वह अमूल्य भेंट है, जिसके होने मात्र से कुछ ना होते हुए भी बहुत कुछ होता हुआ प्रतीत होता है। प्रेम स्वयं का दूसरे के प्रति समर्पण है। यदि इसे और अधिक महत्व दें तो आत्मसमर्पण कहना गलत नहीं होगा। प्रेम के यथार्थ के विषय में यदि कहा जाए तो प्रेम निश्छल और निःस्वार्थ होना चाहिए क्योंकि जहाँ स्वार्थ है वहाँ प्रेम है ही नहीं।
प्रेम को समझना बहुत ही सरल किंतु उतना ही कठिन भी है। और यह सबकुछ परिस्थितियां तय करती हैं। कभी कभी परिस्थितियां यदि विपरीत हों तो जिससे आप अत्यंत प्रेम करते हैं उससे उतनी ही घृणा भी हो जाती है।और इसका यह प्रभाव पड़ता है कि भविष्य में किसी पर विश्वास करना अत्यंत कठिन हो जाता है। यदि अन्य पहलू पर विचार करें तो, आपके प्रेम संबंध यदि टूटते हैं तो यह इस बात का कतई परिचायक नहीं है कि आपके साथ धोखा ही हुआ है। इसके अन्य कारण भी हो सकते हैं अथवा कोई मजबूरी भी हो सकती है। किसी का अनुभव अच्छा रहा, किसी का बेकार भी, यदि इस आधार पर देखा जाए तो प्रेम की अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग परिभाषाएं हैं।
प्रेम के आबंध में
प्रेम के प्रबंध में
बस प्रेम ही प्रेम हो
प्रेम के निबंध में
इस काव्य संग्रह में आप प्रेम के अलग-अलग पहलुओं से अवगत होंगे। वास्तविकता और काल्पनिकता के आधार पर शब्दों के द्वारा प्रेम के विभिन्न पहलुओं को काव्य के रूप में दिखाने की कोशिश की है।