बारिश मे सौंधी मिट्टी की खुशबू का आनंद लेते हुए , कागज की नाव बनाकर , कुछ उछल कूद करते बच्चे , सामाजिक लू के थपेड़ों से बचने के लिए भीगते प्रेमी जोड़े , चाय की टपरी पर खड़े चार यार-दोस्त , कौआ , गौरैया , कुत्ता , बंदर सब कितनी बातें करते होंगे न ? योग्य एवं मनचाहा वर पाने को सावन के सोमवार का व्रत रखती युवतियाँ , साजन के दर्शन मात्र आतुर पत्नियाँ कैसे झूले डाल कर भरी दुपहरिया में कुछ गुनगुनाती होंगी , कभी अपने प्रिय की प्रशंसा तो कभी उलाहना देती होंगी , इस किताब में संकलक द्वारा उन सभी के मनोभावों को संकलित करने की कोशिश की गई है । इसमें सह लेखकों का योगदान प्रशंसनीय है , हम सदैव उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हैं । आशा करते हैं आपको यह काव्य -संग्रह पसंद आएगी ।
पाऊँ कहाँ मैं गाँव वो बारिश वो बचपना
काग़ज़ की एक नाव बनाई हुई तो है..
'इरशाद ख़ान सिकंदर'