"मानवता की ऊँचाई का जायजा लेने वाली ये कविताएँ कोमल कविमन की गहरी संवेदना की सघन अभिव्यक्तियाँ हैं। संग्रह में मैत्री, स्नेह और वात्सल्य जैसी मानवीय भावनाओं से परिपूरित अनेक कविताएँ हैं लेकिन ये वैसी मूल्यपरक कविताएँ नहीं हैं जिनमें जब तक दो-चार बार प्रेम-प्रेम या स्नेह-स्नेह शब्द न आए तब तक हम मान ही न पाएँ कि यह भी भला कोई रसयुक्त कविता है! फ़ेसबुक और तथाकथित नवीन जनसंचार माध्यमों के ज़माने में मुरली की कविताओं के अर्थ गूढ़ हैं। उतने ही गूढ़, जितने किसी कवि की ज़िन्दगी में होते हैं। संकोच, सार्थकता, कोमलता, विचारशीलता और भोक्ता के सत्य से युक्त इस कवि को ध्यान से पढ़े जाने की दरकार है। इस कविता संग्रह में तमाम कविताएँ हैं जो हमारी जड़ों, गुम होती चली जा रही हमारी विरासत, हमारी सोच और चिंतन की विसंगतियों की ओर इशारा करती हैं। ये कविताएँ संग्रह में सुसंगठित रूप से अलग-अलग क्रम में उपस्थित होती हैं लेकिन हमारे वर्तमान परिवेश और मानवता की मनोवैज्ञानिक पड़ताल करती हैं। ये सहज मानवीय गरिमा और अस्तित्व के लिए संघर्ष करती हुई कविताएँ हैं। यहाँ तमाम ऐसे देशज शब्द हैं, जिन्हें पढ़कर आनंद तो आता है लेकिन दुख भी होता है कि उन शब्दों को बड़ी चालाकी से अर्थविहीन और निरर्थक बनाया जा रहा है। अपनी भाषा के संबंध में यहाँ यह अहसास होता है कि किस तरह हम सब लोगों को एक खास भाषा और एक विशेष संस्कृति में रंगने की खतरनाक साजिशें जारी हैं। कुल मिलाकर यह एक सार्थक और पठनीय कविता संग्रह है क्योंकि यहाँ जीवन ही कविता बन गया है।"
प्रांजल धर ( प्रसिद्ध साहित्यकर )