मेरी बचपन से ही हिन्दी साहित्य में रूचि रही है, मैं जब कुछ पढता था तो दिल कुछ अलग सा कहने को करता था तो बालमन ओर ज्यादा साहित्य को पढ़ने लगा। तो जब मैंने औरों की ग़ज़लों या छंदों को पढ़ा तब मुझे ओर अधिक आनंद आने लगा। मेंने कभी छंद एवं अलंकार पर ध्यान नही दिया, बस शब्दों मे छुपे भावों को ही तवज्जो देता रहा। पर जब मैंने हर शब्द के वज़्न को जाना तब मुझे मीटर मे कहने की ललक हुई वहीं आज की नई वाली हिन्दी कविताओं में भावों की प्रधानता दिखी मुझे शायद इसी कारण वश मेंने अपने भावों को मीटर मे ढालना सीखा। ठीक छंदों की ही भााँति मेंने बह्र मे कहना शुरू किया। तो जब कभी मन में भाव आये चाहे वो किसी भी रस के हों तब मैंने बह्र या छंदों का सहारा लिया। मेरे इस ग़ज़ल संग्रह में अधिकतर ग़ज़लें तरही प्रतियोगिताओं से उपजी ग़ज़लें हैं । मैं कोई महान कवि एवं कोई सिद्धहस्त लेखक तो नहीं हूँ। मैं तो केवल एक प्यासा पथिक हूँ जो हर विधा के पानी से अपनी प्यास बुझाना चाहता है |
एक दोहा:-
मेरा कहता मर गया, गया न पर कुछ साथ।
जग से राजन चल दिया, लेकर खाली हाथ।।