चेष्टा मेरी कल्पना का साक्षात है। जैसे आदर्श व्यक्तित्व की मैंने कल्पना की थी वैसा ही एक हुबहू प्रारूप मेरे सामने आया जिससे मैं बहुत प्रभावित हुआ। चरित्र ऐसा जो इस बनावटी दुनिया में भी सरलता, सादगी और किरदार को जीवंत रखे हुए था। रोज उसका अवलोकन करना, समझना उस किरदार को एक अलग एहसास था। इसी एहसास ने मुझे शब्द प्रदान किए और वो शब्द कब रचना बन गए पता ही नहीं चला।