पहली कहानी जहां परिवार और समाज में स्त्री के अस्तित्व की खोज है, वहीं दूसरी कहानी सीधे-सीधे होम आइसोलेशन में लेखक की आपबीती लगती है। आइसोलेशन में कथा नायक ने अपने आपको पढ़ा। वह घरवालों से बुरा बर्ताव करता था, ऑफिस का गुस्सा घर में उतारता था। जबकि घरवाले उससे कितना स्नेह करते हैं। उसने कभी घर को ध्यान से नहीं देखा। वह सबसे कहता था, बहुत काम है-पर आएसोलेशन में पड़े रहने पर ऑफिस से कोई कॉल नहीं आई। इससे यह भी पता चलता है कि नौकरी को अपने घर, परिवार और अपने जीवन से भी अधिक महत्व दे डालना भी सही नहीं है।
अज्ञेय की एक बेहद चर्चित कविता की पंक्तियां हैं, 'दुख सबको मांजता है/और चाहे स्वयं सबको मुक्ति देना वह न जाने, किंतु/ जिनको मांजता है, उन्हें यह सीख देता है कि सबको मुक्त रखें।'
मुरली मनोहर श्रीवास्तव की यह किताब सिर्फ कोरोना के विरुद्ध नहीं, बल्कि किसी भी विपत्ति के विरुद्ध मनुष्यता को जूझने और जीतने का हौसला देगी। कल्लोल चक्रवर्ती ( संपादकीय मण्डल - अमर उजाला )