इस संग्रह में कवियत्री ने शराब की गंदी लत के चलते, पारिवारिक पीड़ा व समाज में व्याप्त हो जाने वाली, ’बुराईयों’ का वर्णन किया हैं ।
तथा इसे बारम्बार त्याज्य बताते हुए इसके विभिन्न विद्रूपो को प्रदर्शित करते हुए इसके द्वारा होने वाले पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक, नैतिक, चारित्रिक व वैयक्तिक पतन का क्रमशः चित्रात्मक वर्णन किया हैं ।
शराब एक पैमाने से प्रारंभ हो कर गैलनों तक पहुंच जाती हैं । व्यक्ति को पता ही नही चलता कब उसका गुलाम रहने वाला शौक, उस पर हावी होते हुए उस पर राज करने लगा, व उसे अपनी दासता प्रदान कर गया ।
और तब होती हैं, सामाजिक, पारिवारिक, आर्थिक, चारित्रिक, नैतिक व दांपत्य जीवन स्तर की विनाश लीला प्रारंभ ।
दिन-दिन उक्त स्तरों से पतित होता हुआ महकश घर, परिवार, समाज संस्थान सभी स्तरों से पदच्युत हो जाता हैं। और आंतक का एक साया बन कर अपनी ही जीवन बगिया का स्वयं कंटक बन जाता हैं ।
जिस परिवार, समाज, को वह संवार कर गुलशन बना सकता था । अपनी महकशी में साथियों की ख्वाहिशों का श्मशान बना देता हैं ।
स्वयं तो अपना स्तर गिराता ही हैं, अपितु घर-परिवार की प्रतिभाओं को भी नष्ट कर उनमें कुंठा के काले साये पनपा देता हैं ।
बेटियां जहर खा जाती हैं, बेटे आवारगी में जेल पहुंच जाते हैं । स्त्री पतिता अथवा भिखारिन हो जाती हैं । किन्तु महकश को शर्म नही आती और कभी-कभी इसी महकशी के पथ पर मदनशीं ’’असमय,’’ अकाल मृत्यु को प्राप्त कर घर-परिवार को फना कर जाता हैं।
ऐसे में उसके जीने-मरने पर सबसे ज्यादा दुखी उसका परिवार ही होता हैं । उस परिवार के दर्द को बयाँ करते हुए कवियत्री ने मधुशाला से ’विष’ के प्यालों की मांग की हैं, जो कि महकश के परिवार का गम गलत कर सकें ।
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