“नेह’’ या “प्रेम’’ का अपना एक अमिट व अटूट बंधन होता है । जो कि, बिना किसी धागे के, रिश्ते के, समझोते के, व्यवहार के, स्पर्श के, नजदीकी के, भी अनुभूत किया जा सकता है ।
तुम मेरे हो, प्रीत की भावनाओं का ऐसा संग्रह है, जिसमें कवियत्री ने प्रेम की शाश्वतता व स्थायित्त्व के आधार पर प्रिया व प्रिय को एक-दुसरे का पूरक बताया है, व समय-समय पर जीवन की तमस भर
पुरूष पौरूषत्त्व खो रहा है, स्त्री का स्त्रीत्त्व माँ का ममत्त्व चट हो गया पिता का पितृत्त्व क्षीण हो चला राम लक्षण से भ्रातृत्त्व को मानने वाली संस्कृति भ्रात्तृहन्ता हो गई । <
मत मारों कोख में समाज के सभी वर्गो में एक ताड़ना स्वरूप है, लेखक का मन चीत्कार कर रहा है । उस नन्हीं जान हेतु जो अधखिली होने पर भी श्वासों के पूर्ण वयस्क होने से पहले ही नोच खसोंट कर
इस संग्रह में कवियत्री ने शराब की गंदी लत के चलते, पारिवारिक पीड़ा व समाज में व्याप्त हो जाने वाली, ’बुराईयों’ का वर्णन किया हैं ।
तथा इसे बारम्बार त्याज्य बता
आज हर तरफ एक होड़ सी मची हैं, जीवन में अग्रिम पंक्ति में स्थापित रहने हेतु, ’किन्तु’ यही आपाधापी होड़ा-होडी व्यक्ति के जीवन में कभी-कभी गहन निराशा बनके भी घर कर जाती हैं ।