मानव मन सृष्टि की उत्पत्ति से ही इस के रहस्य को समझने में लगा हुआ है। हालांकि इस कवायद में हम काफी कुछ समझ गए है, लेकिन अभी बहुत से राज खुलने बाकी हैं। इस रहस्यमयी दुनिया के साथ साथ मानव मन भी एक बहुत बड़ा रहस्य है, जिसके बारे में भी बहुत से राज जानना अभी शेष है। मानव कैसे जीवन व्यतीत करता है, किन किन समस्याओं का सामना करता है, कैसे अपने आप को ढालता है, कैसे रिश्ते बनाता है, कैसे समाज के विभिन्न पहलुओं के साथ सामंजस्य बिठाता है, कैसे इस दुनिया मे अपने आप को रमाता है, ये सब मानव की अपनी काबिलियत और अनुभव पर निर्भर करता है। इन्ही कुछ पहलुओं पर आधारित कविताओं का संग्रह है 'दुनिया गोल है बाबू', यह संग्रह की ही एक कविता है जिसे आवरणशीर्षक रखा गया है। सही अर्थों में कहा जाए तो ये संग्रह एक ऐसे गुलदस्ते की तरह है जिसमें अलग-अलग प्रकार के फूलों को समाविष्ट किया गया है।