गाँव या शहर जाएं किधर, ये प्रश्न विचारणीय है। सबसे पहले मैं एक महत्वपूर्ण बात इस पुस्तक के बारे में बताना चाहता हूं वो ये कि इस पुस्तक की नींव मेरी पहली पुस्तक तन्हा तन्हा चाँद प्रकाशित होने के साथ ही पड़ गई थी। हुआ यूं कि जब मेरी पुस्तक तन्हा तन्हा चाँद प्रकाशित हो कर मेरे हाथों में आई और मेरे चाचा श्री राजन सिंह ने देखा तो उन्होंने उसे बहुत सराहा और एक सलाह अपनी इच्छा व्यक्त किया कि मैं एक और पुस्तक करुं जो गाँव और शहर की विशेषताओं को वर्णित करे। वो स्वयं भी लिखने में रुचि रखते हैं और मुझे याद है कि मैंने शुरुआती दिनों में उनसे बहुत कुछ सीखा है। उन्होंने ही इस पुस्तक का शीर्षक भी दिया, गाँव या शहर जाएं किधर, आज मुझे खुशी है कि मैंने उनके कहे का मान रखा।
गाँव या शहर जाएं किधर, जैसा कि मैं ये बार बार कहता हूं, ये एक विचारणीय प्रश्न है और इसका उत्तर हमेशा एक ही आता है कि भले हम मजबूरी में या फिर शौक से शहरों में रह रहे हों परन्तु हमारा मन आज भी गाँव की तरफ ही भागता है, खींचता है। हमारा शरीर भले ही शहर में रह रहा हो पर हमारी आत्मा गाँव में ही बसती है। बचपन से ही ये सुना है। पढ़ा है कि भारत गाँवों का देश है और भारत गाँव में ही बसता है। आज शब्दशः इस बात को सत्य होते हुए भी देख लिया। क्योंकि इस पुस्तक में जो सह लेखक हैं। जो भारत के भिन्न भिन्न प्रान्तों से संबंध रखते हैं और जिनमें से कई शहरों में ही रहते आए हैं पर उनकी रचनाओं में गाँव को ही विशेष व महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। सच में गाँव में जो अपनापन है वो शायद ही शहरों में देखने को मिले।