‘क’ से कहानी और ‘क’ से ही कविता होती है। कविता और कहानी दोनों में ही ‘क’ से कथन होता है तथा दोनों में ही ‘क’ से कल्पना का समावेश भी हो सकता है। इस तरह कविता और कहानी में काफ़ी समानताएँ हैं परन्तु फिर भी कुछ भिन्नताएँ भी हैं और इन्हीं विभिन्नताओं ने मुझे कहानियों के साथ-साथ कविताएँ लिखने के लिए लालायित किया।
थोड़े शब्दों में ही अपनी बात कहने का सामर्थ्य, छंदबद्धता तथा गेयता कविता और कवि के कुछ ऐसे विशेष गुण हैं जिनके कारण कविताएँ साहित्य की अन्य विधाओं से हटकर प्रतीत होती है। और फिर बाल गीतों की तो बात ही कुछ निराली होती है। नन्हे-नन्हे बच्चे, अपनी तुतलाती बोली में, जब इन गीतों को गुनगुनाते हैं तो वातावरण सुमधुर हो जाता है और जब कवि इन नन्हें-नन्हें गीतों में भाँति-भाँति के भाव भर देता है तो सुनने वाला उनको सुनकर भाव विभोर हो जाता है। नन्हें बालक तो नादान होते हैं। वे कविता के अर्थ नहीं समझते परंतु उसकी लय-ताल और तुकांतता उसे भी आकर्षित करतीं हैं और इसी आकर्षण के कारण वे उठते-बैठते सोते-जागते, पढ़ते-खेलते, इन कविताओं को गुनगुनाते हैं।
‘गीत गुनगुनाओ’ मेरा दूसरा बाल-गीत संग्रह है। मेरा पहला बाल-गीत संग्रह ‘गीत-गुलशन’ 2001 में ‘राजस्थान साहित्य अकादमी’ के सौजन्य से प्रकाशित हुआ था। इसके बाद बहुत से बाल-गीत लिखे और वे विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित भी होते रहे परंतु उनके संग्रह प्रकाशित न करवा पाई। परंतु इन दिनों मैंने यह महसूस किया कि अधिकाधिक बालकों को लम्बे समय तक बालगीत उपलब्ध कराने के लिए बाल-गीत संग्रह प्रकाशित करवाने की नितांत आवश्यकता है। बस इसी प्रयास में इस बाल-गीत संग्रह को तैयार किया है।