कला का उद्देश्य जीवन के लिये है, वह कोई उद्देश्यहीन साधना नहीं हैं। यह भारत के दर्शन व मूल्यबोध की सुंदर अभिव्यक्ति है जिसे कलाकार ने अनुभव किया और जो वह दर्शक तक पहुंचाना चाहता है। भारत में धर्म की पृष्ठभूमि में स्थापत्य व कला का उदय हुआ है। भारतीय कला का अध्ययन मंदिरों के माध्यम से किया जाता है किन्तु भारतीय कला के अवशेषों का केवल बाह्यः अध्ययन ही पर्याप्त नहीं है उनके भीतरी अर्थ का भी विवेचन आवश्यक है। भारतीय कला की आत्मा उसके अलंकरण प्रतीकों में है जो न केवल देखने वाले को प्रसन्न करती है अपितु एक पावन उद्देश्य की पूर्ति कर सुख-समृद्धि की प्राप्ति व अमंगल से रक्षा भी करती है। भारत में स्थापत्य कला भी है, विज्ञान भी, पुरातत्व भी तकनीक भी और दर्शन भी। भारत में हम कला, दर्शन और विज्ञान के बीच कोई सीमारेखा नहीं खींच सकते। स्थापत्य कला का अध्ययन करते समय हमें शास्त्रीय (ग्रंथ) व उपलब्ध प्रमाण (स्थापत्य अवशेष) दोनो पक्षों को लेकर चलना होगा। अतः हमें उपलब्ध पुरास्मारकों का अध्ययन शास्त्रों के साथ करना होगा। इसी क्रम में राजस्थान के हाडोती क्षेत्र में विभिन्न कालों में बने समृद्ध, स्थापत्य कला व शिल्प के प्रमाण मंदिरों का सर्वेक्षण एवं अध्ययन करने का प्रयास किया है। स्थापत्य के प्रतिनिधि ये सभी मंदिर,मूर्तियाँ, शिलालेख भारतीय कला एवं ज्ञान की धरोहर है। इनकी सुरक्षा करना हमारा कर्त्तव्य है। पुस्तक हाड़ोती अँचल की कला विरासत की सुरक्षा और इसे प्रतिष्ठित स्थान दिलाने की दिशा में एक सामयिक कदम होगी ऐसी मेरी आस्था ही नहीं बल्कि पूर्ण विश्वास है।