बाल कविताएँ चित्ताकर्षक और ह्रदयाह्रलादक भूमिका में बाल साहित्य को सुशोभित और मुखरित करती हैं। काव्य कला का यह क्षेत्र साहित्य का जितना मर्मस्पर्शी स्वरूप में खड़ा कर पाता है जो त्रिकाल तक जीवन को ओठों पर गुंजायमान पाता है।
साहित्य की भूमि पर उगे उपवन में काव्य के कोमल कुंज उनके किश्ल्य, मंजर, कुसुम कलिकाएँ उनकी पंखुड़ियों के विविध रंग गंध और छटा बाल भावनाओं को सरस्वती मंदिर का सौरभ प्रदान करता है जो मनोहारी ज्ञान प्रकाशक और अज्ञानता का निवारक गायन में मुखरित होता है।
काव्य कला की रचना धर्मिता में ज्ञान का उद्घोष युगधर्म के साथ युगबोध का प्रबोधक परिवेश उत्पन्न करता है जो कभी वेद की ऋचाएँ होती थी, सुरसरिता थी, आज की कविता कही जाती है। कवि का हृदय शारदा को मंदिर-सा सौभ्य, सुरभ्य वह सुगम एवं सुलभ सौन्दर्य ही नहीं शैर और सुधपान भी करता है। मलिक काव्य क्रिश्लय काव्यगारी काव्य कुसुम काव्य कलिका लघुकाव्य जन हुंकार मुर्च्छना के स्वर अंग्रेजी में मेमोराजर तथा लिट इनफलो धान श्रृंखला निवेदन बाल रखा।