यह किताब एक काव्य संकलन है जो एक ओर जिंदगी की जमीनी हकीकत से रूबरू करवाती है वही दूसरी ओर रिश्तों में वास्तविकता का आइना ला खड़ा करती है।
इस संकलन का नाम "खामोश किनारा" मेरे अंदर के उस शख्स का किरदार निभाता है जो रूबरू है रिश्तों की हकीकत से और शायद अब खामोश भी।
मैंने अक्सर रिश्तों में खामोशियों को महसूस किया है और यह ऐसा बेजुबान दर्द है जो शख्स को अंदर ही अंदर खाता रहता है। कुछ ऐसे पहलुओं को पाठकों के समक्ष रखा गया है जिसे आप पढ़ कर अपनी आपबीती से जोड़ पाएंगे।
जिंदगी के कुछ शाश्वत सत्य है जिन्हें हम जान कर भी नकार देते है और मोह के धागों में बंध जाते है इस संकलन के कुछ लेखकों ने ऐसे हालात को पन्नो पर उतारा है।
कुछ अनकहे जज़्बात भी इस संकलन का हिस्सा है जो अक्सर बोल कर बयां नहीं हो पाते।
इस संकलन के लेखकों ने सांसारिकता, रिश्ते, मोहब्बत, अकेलापन, जुदाई, बढ़ती उम्र, वक्त से जुड़े अपने अनुभव सांझा किए है।
मेरी आशा है की इस संकलन को पढ़ते हुए आपको पन्ना दर पन्ना कुछ नया अनुभव मिले।