अमूमन हर स्कूल में प्रायः प्रति वर्ष कम से कम पांच सांस्कृतिक कार्यक्रम (26 जनवरी, 15 अगस्त, शिक्षक दिवस, बाल दिवस, वार्षिक समारोह) अवश्य होते हैं। आजकल ज्यादातर सांस्कृतिक कार्यक्रम सिर्फ फिल्मी नाच-गानों तक सीमित होकर रह गये हैं। बच्चे नाच-गाकर खुश, बच्चों को नाचता-गाता देख अभिभावक गद्गद् और शिक्षक-शिक्षिकाओं का टेंशन ओवर। सांस्कृतिक कार्यक्रम का अर्थ सिर्फ नाच-गान नहीं होता। सांस्कृतिक कार्यक्रम में विविधता होनी चाहिए। नाटक न सिर्फ कार्यक्रम में चार चांद लगाता है बल्कि बच्चों को उनकी अभिनय प्रतिभा निखारने का मौका देता है। छोटे बच्चों को मंच पर अभिनय करते देखना अपने आप में एक लाजवाब अनुभव होता है।
अलग से बच्चों के लिए रंगमचीय नाटक कम लिखे गये हैं, खासकर हिंदी में। यह नाट्य पुस्तक इस कमी को पूरा करेगा, ऐसा मुझे विश्वास है। कहानियां जान-बूझकर पुरानी ली गई हैं, लेकिन उनका प्रजेन्टेशन बिलकुल नये अंदाज में है। इन नाटकों को बिना किसी ताम-झाम के आसानी से कहीं भी मंचित किया जा सकता है। ये सभी नाटक कई बार मंचित हो चुके हैं और दर्शकों की वाहवाही लूट चुके हैं।
अब आपकी बारी है। अगले महीने सांस्कृतिक कार्यक्रम है न? बस, कर डालिए उसमें एक दो नाटकों का मंचन। खुद हंसिए और दूसरों को भी हंसाइए।
डाॅ कुमार संजय अंग्रेजी के प्राध्यापक हैं। आपकी गिनती स्पोकन इंग्लिश, ग्रूप डिस्कशन, पर्सनल इंटरव्यू और पर्सनाल्टी डेवलपमंट के श्रेष्ठ शिक्षकों में होती है। स्पाकेन इंग्लिश और पर्सनाल्टी डेवलपमेंट के ऊपर आपकी नौ पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।
दूसरी तरफ आप हिंदी साहित्य में गहरी दिलचस्पी रखते हैं। आपने कई दिशा बोधक नाटकों की रचना की है। वर्ष 2011 में इनके नाटक ‘एक करोड़’ पर दिल्ली सरकार ने इन्हें मोहन राकेश सम्मान से विभूषित किया। अबतक आपकी चैदह नाट्य पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।
सद्य प्रकाशित नाट्य पुस्तक आपकी अद्भूत कल्पना शक्ति और लाजवाब प्रजेन्टेशन की उम्दा मिसाल है।
आप अच्छे फोटोग्राफर हैं, विख्यात क्विज मास्टर हैं और ड्रम बहुत उम्दा बजाते हैं।