जनचेतना के सशक्त रचनाकार डॉ.डी.एस.संधु जनवादी चेतना एवं अपार संभावनाओं के सशक्त रचनाकार हैं।आपके लेखन की विविधता तथा निरंतरता उनकी क्षमता,निष्ठा, प्रतिबद्धता तथा परिश्रम की परिचायक है। । लगभग प्रतिवर्ष आपके प्रकाशन सामने आते ही रहते हैं। युवावस्था से ही लेखन,मंचन,अभिनय, निर्देशन, संगठन आदि में व्यस्त डॉ.संधु कब अपने व्यवसाय एवं परिवार के लिए समय निकालते होंगे यह एक यक्ष प्रश्न है। व्यक्तित्व से सुगढ़ एवं सहज सरल बहुमुखी प्रतिभा से संपन्न स्पष्टरूप से अपनी बात कहने और उस पर अडिगता से रहने वाले डॉ. संधु की कविताओं की भाषा शैली साहित्य मनीषियों तथा जनसंघर्षों से जुड़े लोगों को खासी प्रभावित करतीं हैं।
साम्यवादी, प्रगतिशील - जनवादी विचारधारा से संबंद्धता के कारण ही आपकी रचनाओं में वर्तमान सामाजिक परिवेश में व्याप्त विद्रूपताओं, विषमताओं और विसंगतियों के प्रति छटपटाहट है और वह बदहवास बिना किसी लाग लपेट के प्रगट होती है।
डॉ.संधु के स्वर आक्रोश के भी नहीं हैं और नैराश्य के भी नहीं। उनकी कलम कोई नुस्खा भी नहीं देती और चुपचाप बैठकर सहने की सलाह भी नहीं देती।
"मतदाता नहीं हो" की कवितायें एक आयना है,जिसमें स्त्री की पराधीनता उसका उत्पीड़न, युवाओं की कुंठा, शैशव की दुरावस्था, दरिद्र की निरीहता के प्रतिबिंब है तो साथ ही सक्षम,सबल और बुर्जुआ वर्ग की निर्दयी वृत्तियों का प्रकटीकरण भी है। इन कविताओं में विक्षोभ भी है ,प्रतिकार भी,अनास्था भी है और विग्रह विघटन के संकेत भी। सरल, सहज समीप के बिम्बों, प्रतीकों के माध्यम से कवि आपकी बात आपसे ही कहना चाहता है।विश्वास है कृतिकार का अभीप्सित पाठकों, सुधीजनों तथा साहित्य प्रेमियों तक पहुँचेगा !
प्रो.एस.एन. सक्सेना अशोकनगर 2 जून 2002