यह मेरी इक्यावन कविताएँ शृंखला का पाँचवाँ भाग है। जब तक प्रभु इच्छा रहेगी मेरा लेखन अबाध चलता रहेगा। किसी से भी मेरी प्रतिस्पर्धा नहीं है। मैं मौलिक लेखन का हृदय से सम्मान करता हूँ। प्रत्येक कवि में अपार सम्भावनाएँ कुलमुलाती रहती हैं और इसीलिये कविता उत्तरोत्तर समृद्ध हो रही है। हमें कविता के मूल सिद्धान्तों व व्याकरणीय पक्ष को अनदेखा नहीं करना चाहिए। शिल्प धीरे-धीरे परिपक्व होता है।