बदलते समय के साथ साथ मानव ने अनेक दिशाओं में कामयाबी हासिल कर ली है और पूर्णता की ओर अग्रसर है,परंतु व्यवहारिक दृष्टि से अगर देखा जाए तो इस कामयाबी के नीचे दबी हुई मिलेगी नैतिकता जो मनुष्य को दूसरे अन्य जीव से बेहद अलग और परिपूर्ण बनाती है। कवि श्री विनोद ढींगरा जी का यह काव्य संग्रह ‘नई शाख से’ आज की हमारी जीवन शैली पर एक व्यंग्य है कि किस प्रकार हम अपने जीवन में प्रेम संवाद को कम करते जा रहे हैं और आधुनिक जगत की रोशनी में मस्त होकर एक ढोंगी जीवन जी रहे हैं,जहाँ प्रेम स्वार्थ में बदल गया है। रिश्तों की जिम्मेदारियाँ बस नाम पाने के लिए निभाई जा रही हैं।कवि श्री विनोद ढींगरा जी ने इस बदलाव का अनुभव कर अपनी रचनाओं में बेहद खूबसूरती से व्यक्त किया है। प्रयागराज के साहित्यिक मंच काव्य अपराजिता द्वारा इस काव्य संग्रह का सम्पादन किया गया है। निश्चय ही यह काव्य संग्रह पढ़े जाने योग्य है।
-शैलेंद्र प्रताप वर्मा (सह संपादक काव्य अपराजिता )