कैलाश मनहर कोई नए कवि नहीं हैं उन्हें कवितायेँ लिखते हुए चार दशक से कम नहीं हुए होंगे | आज भी वे राजस्थान के जयपुर जिले के एक कस्बे मनोहरपुर में रहते हैं | वे पेशे से स्कूल में अध्यापक रहे हैं | इस वजह से उनकी कविता की ज़मीन आज भी खेतों की तरह खुरदुरी और मटियाले रंग की ज्यादा है | वे बातों को बुनियादी जगहों से ज्यादा उठाते हैं | लेकिन अपनी बात को चालाक वक्रताओं का शिकार होने से सावधानीपूर्वक बचाते हैं | जैसी सादगी और साधारणता उनके जीवन में है वैसी ही सादगी और साधारणता उनकी कविताओं में भी है | अपनी बात को भी वे बहुत सादगी और सपाटबयानी में कहने से झिझकते नहीं हैं | जहां वार करना होता है वहाँ सीधे सीधे वार करते हैं | वे शायद ही कभी पीठ पर वार करते हों | कैलाश मनहर की कविताओं के विषय भी उनके बहुत आसपास के ज़मीनी होते हैं लेकिन उनके भीतर से जो कुछ वे तलाश करके लाते हैं वह पाठक के भाव और विचार जगत में हमेशा कुछ नया जोड़ता है | उनके इस नए संग्रह की कवितायेँ इतनी कालबद्ध हैं कि दो हज़ार इक्कीस के उतरते दो महीनों यानी नवम्बर और दिसम्बर माह की तारीख—तिथियों से गुजरते क्षोभ और पर्व—त्योहारों तक की धारणाओं को केंद्र में रखकर वे सौन्दर्यबोध संबंधी उन सचाइयों को लाने से नहीं चूकते जो जन और अभिजन को एक दूसरे से अलग करती है |