मेरे पिता डाo त्रिलोक ‘उजागर’ की उन्मुक्त कलम से लिखी गई इन गज़ल, शेर-ओ-शायरी और कविताओं को पाठकों के समक्ष आने का सौभाग्य कुछ 60-70 वर्ष बाद मिला, देर से मिला, पता नहीं क्यों, शायद यह उनकी या फिर मेरी नियति थी। अस्तु।
सच तो यही है कि अपने पिता के भावुक मन की गहराई से कविता बन कर कलम पर उतरे ढेरों बिखरे पन्ने, उनके जाने के बाद मिले और ये कविताएँ पढ़ते पढ़ते कब मेरा मन सीप बना, कब स्वाति नक्षत्र की बूँद टपकी, कब मोती बनी, मैं खद़ु भी जान ही न सका।
फिर अचानक एक दिन जैसे अंतर्मन में किसी ने कहा “अरे ये तो खरे मोती हैं, इन्हें समेटो और सहेजो” फिर एक एक कर उन बिखरे पन्नो से निखरे मोती चुने और माला में पिरो दिये, तभी इस संकलन का जन्म हुआ, यह मेरा परम सौभाग्य।
मैं कृतज्ञ हूँ अपने पिता की उस अमर वाणी के लिए जो प्रणय गीत भी गाती है और साधक सी शांत भी रहती है, जिसे लिपिबद्ध कर मैं इस संकलन की रचना कर सका और इन सब से बढ़ कृतज्ञ हूँ अपने विधाता के विशुद्ध वरदान स्वरूप मिले इस अवसर के लिए । ये भाव आप भी अपने मन के करीब पाएंगे, इस अटूट विश्वास के साथ...
अतुल उजागर
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