In this book... रूद्रम - ब्रह्मांड का रक्षक
'दानव पाप लोक के बंदी गृह से निकल कर नई पृथ्वी पर अधिकार करना चाहता था। परंतु रूद्रम के पराक्रम ने उसे पुनः पाताल लोक में बंदी बनने पर विवश कर दिया। किंतु दैत्य, पिशाच और शैतान कभी भी घात कर सकते हैं। परंतु रक्षक और योद्धा किसी भी परिस्थिति में शैतान के सम्मुख शीश नहीं झुकाते। धर्म के लिए सर्वत्र त्याग ही एक धर्म योद्धा का धर्म और कर्म होता है। और रुद्रम की यात्रा एक ऐसे ही कार्य के लिए थी। क्या रूद्रम, दानव को परास्त करने में सफल हुआ? या विफल?"