पुराण काल से चली आ रही हमारी संस्कृति, जो आज कही ना कही नव भारत में खो रही हैं,
संस्कृति का मतलब सिर्फ़ नमस्ते करना नही हैं,संस्कृति का मतलब है आपस में प्रेम बनाएं रखना प्रेम को समझना,उसमे खो जाना चाहे वो पहनावा हो या बोल चाल, लेखक न प्रेम के माध्यम से स्त्री और पुरुष दोनों को ही भारत कि संस्कृति से जुड़े रहने का संदेश दिया हैं, इस कविता में उस प्रेम का वर्णन हैं, जिसे आज की पीढ़ी नहीं जानती हैं, और ये कितना भयानक रूप लेती जा रही हैं जिसकी कल्पना भी असहनीय है।