यह पुस्तक सन 2000 में प्रकाशित हुई है । इस पुस्तक का प्रथम संस्कारण प्रकाशित होते ही पुस्तक पापुलर हो गई थी । शीर्षक रचना सत्य जीतता है अनेक बार विभिन्न मंच पर पढ़ी गई व सराही गई है ।यह रचना श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देती है । पुस्तक की भूमिका प्रसिद्ध कवि व वरिष्ठ साहित्यकार श्री अशोक चक्रधर जी ने लिखी है ।
पुस्तक की लगातार बनी हुई मांग को देखते हुये इसका द्वितीय संस्काण प्रकाशित हुआ है । द्वितीय संस्कारण में पुस्तक से जुड़ी कुछ और बातें लेखक ने शेयर की हैं जो बड़ी ही रोचक हैं ।
अशोक चक्रधर की लेखनी से :-
संघर्ष में अचानक लेखनी आती है और व्यक्तिगत जीवन का खून कर डालती है । यह खून जब पृष्ठों पर पड़ता है तो कविता की शक्ल अख़्तियार करता है ।जीवन के रण – मैदान में व्यक्ति की निजता लहूलुहान , आहात और क्षत – विक्षत हो जाती है और जीतती है लेखनी , जो अपने - पराये के मोहग्रस्त संबन्धों से ऊपर उठकर निर्वैयक्तिक हो चुकी होती है । मुरली मनोहर श्रीवास्तव की कविताएं पढ़ने के बाद कविता के बारे में उनकी समझ को लेकर कुछ ऐसी ही अवधारणा बनती है ।
न्यूनाधिक रूप से यह बात हर ‘जैनुइन’ कवि की काव्य प्रक्रिया पर लागू होती है । कविता संवेदनाओं की ईमानदारी और ज्ञान- निष्कर्षों की तथ्यात्मकता यदि नहीं आई तो कवि का आत्म स्वयं को धिक्कारने लगता है ........ और यहीं से प्रारंभ हो जाता है एक आत्म - संघर्ष । इस संकलन की अधिकांश कविताओं में इस आत्म – संघर्ष का कहीं वर्णनात्मक , कहीं विश्लेषणात्मक और कहीं तत्काल अनुभूव – प्रसूत लेखा जोखा है । इस आत्म –संघर्ष का फ़लक अत्यंत व्यापक है क्योंकि इसके मूल में जो दर्द है वह सीने में पलने वाला नहीं है । उसने मस्तिष्क से जन्म लिया है ।
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