जनचेतना का क्षीतिज
डॉ. डी.एस. संधु समकालीन हिंदी साहित्य के चर्चित कवि, लेखक, नाटककार हैं। इनकी सृजनधर्मिता की अपनी विशिष्ट निर्भीक शैली और जनवादी चेतना के लिए पहचान है। "अस्सी रुपया" नाट्यकृति से लगाकर "सीखचों में शालभंजिका" नाम से डॉ.डी.एस.संधु का यह चौथा काव्य संग्रह प्रकाशन से यह स्पष्ट है कि कलमकार में लेखन की अद्भुत क्षमताएं हैं। डॉ.संधु के कृतित्व में यह बात नजर आती है कि कवि एवं कविता आडम्बरों तथा शब्दों के मोहजाल से मीलों दूर यथार्थ के साथ जनमुखी भावना प्रबल करती सतत् प्रवाहमान है। जो अपने समग्र रुप प्रतिबद्धता के साथ संघर्षरत जन चेतना निर्मित करती दृष्टिगोचर होती है। डॉ.डी.एस.संधु का यह चौथा काव्य संग्रह "सीखचों में शालभंजिका" पाठकों के लिए अवश्य ही जन संघर्ष की भावनाओं से अवगत कराने में सक्षम होगा जिसमें मानवीय संप्रेषणियता है तो शिल्प की सहजता तथा भाषा विम्बों, प्रतीकों, मुहावरों के सामंजस्य की अभिव्यक्ति। कवि को भीड़ में अपनी पहचान देती है।आप सभी पाठकों के लिए भरपूर काव्यानंद ऐसा मेरा विश्वास है।
-डॉ.बी.एल.जैन