मेरी मर्मस्पर्शी वेदनाओं पर आधारित ये किताब, मेरे जीवन के पहलुओं को उजागर करती है। शायरी में कहे लफ्ज़ों में हालातों का बखान है। अक्सर प्रेम विफल परिस्थितियों में संदेहस्पदक स्थिति में रहने लगता है। उसको अपनी जगह चाहिए। वह जगह जो बरसों पहले उन्हीं रास्तों पर छोड़ आया था, जहां पहली बार प्रेम से उसकी मुलाकात हुई। अलगाव की स्थिति, विवशता बता, दूसरी राह निकल पड़ती है। परंतु जब वही प्रेम बरसों बाद आपके समक्ष खड़ा हो जाए, तब वह शिकायतों का अंबार उड़ेल देता है। वह वास्तविक सत्य को जानना चाहता है कि आखिर प्रेम हुआ क्यों? हुआ तो रुका क्यों नहीं? जब चला गया, तो फिर से ये वापिसी कैसी। "ताल्लुकात" बिगड़े, संभले या संवरें, यह इस किताब के लफ्ज़ों में पूर्णतः जागृत है