आज हर तरफ एक होड़ सी मची हैं, जीवन में अग्रिम पंक्ति में स्थापित रहने हेतु, ’किन्तु’ यही आपाधापी होड़ा-होडी व्यक्ति के जीवन में कभी-कभी गहन निराशा बनके भी घर कर जाती हैं ।
कभी लोगों के भय से, कभी हार जाने, पीछे रह जाने, शर्म व हया, अथवा आलस्य या नीरसता के माने, कवि ने अपनी कविताओं में उन सभी नैराश्य कणों को क्षण भंगुरित मानते हुए जीवन-पथ पर सतत चलायमान रहने व सफलता के शीर्ष पर अपना परचम लहराने हेतु विविध आयामों से निराशा का खंडन करते हुए आत्मविश्वास के स्वर्ण कणों को पंक्ति - पंक्ति में चलित किया हैं ।
एक-एक पंक्ति व्यक्ति व व्यक्तित्व के निखार हेतु ओजस्विता का भंडारण हैं । कवि ने विभिन्न उदाहरणों द्वारा व्यक्ति की सुषुप्त-चेतना, अभिलाषा व उत्साह को जागृत करने का सतत प्रयास किया हैं जीवन अमूल्य हैं । इसे नैराश्य व खिन्न भाव से नहीं अपितु स्फूर्त व आशावान बन कर जीना चाहिये, व जब-तक जीवन में अपना लक्ष्य हासिल न हो, व्यक्ति को किसी भी, मील के पत्थर पर विश्राम नही करना चाहिये ।
सतत प्रयास व एकाग्रता लक्ष्य पर पहुँच कर अपना परचम लहराने हेतु बाध्य करती हैं । लोगों के भय से हार जाने की कुंठा से, या पीछे रह जाने की निराशा से निकल कर मात्र अपने कदमों को बढ़ाने व पारी को खेलने हेतु जागृत रहना ही व्यक्ति का ध्येय हो इस हेतु प्रेरित करती हैं । सौ छोटी हार एक बड़ी जीत मुकम्मल कर सकती हैं । इस बात को मध्यनजर रखते हुए । कविता ने उठने व चलने का आहवान किया हैं । जो कि, उनींदी चेतना व उत्साह को जाग्रत कर, जीवन पथ पर अग्रसर होते हुए मंजिलों को तय करने में सहायक हैं ।
निर्जीव विचारधारा में सजीवता का संचरण करते हुए उन्नति की ध्वजा को लक्ष्य के शिखर तक सुशोभित करने में प्रेरक हैं ।
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