'वल्लरी ' मुरलीधर श्रीवास्तव की प्रेम कविताओं का संग्रह है जिसे उन्होंने यौवन की दहलीज पर लिखी थी और झिझकते हुए प्रौढ़ उम्र में पहली बार प्रकाशित करवाया था। प्रथम संस्करण के लगभग पचास वर्षों बाद इन कविताओं से गुजरते हुए पीढियों के अंतराल को समझा जा सकता है। इन कविताओं में प्रेम की अभिव्यिक्त को आज की पीढ़ी तक पहुंचाने का प्रयास किया है उनकी पौत्री डॉ जूही समर्पिता ने। इन कविताओं में प्रेम प्रतीकात्मक है। प्यार छलकता है, अश्लीलता नहीं। वासनात्मक बिम्ब तक कहीं नहीं मिलते । टैगोर की 'गीतांजली' के अनुगायक मुरलीधर श्रीवास्तव 'शेखर ' की यह कृति नयी कविता के दौर में क्लासिक की श्रेणी में रखी जा सकती है।
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