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Ye Pal Bhi Guzar Jaayega!? / ये पल भी गुज़र जाएगा!?

Author Name: Parul Saxena 'Kehkasha' | Format: Paperback | Genre : Poetry | Other Details
हर पल हर एक लम्हा, जो हम गिनते हैं, जीते हैं, जिन्हें जब हम कुछ सालों के बाद याद करते हैं, तो आते हैं पलकों में आंसू और चेहरे पर एक मीठी सी हँसी। ऐसे ही पलों के संकलन है ये पुस्तक, नानी की कहानियों से बुढ़ापे में खुद नानी बनना, ये सब बस एक ही वाक्य में सिमट जाएगा, ये पल भी गुज़र जाएगा। 'ये पल भी गुज़र जाएगा!?' पारुल सक्सेना ‘कहकशा’ की संकल्पना है जो दो भाग में विभाजित है। पुस्तक का पहला भाग- 'ये पल' है, जिस में ज़िन्दगी के छोटे-छोटे पलों का कविताओं के माध्यम से ज़िक्र है। पुस्तक का दूसरा भाग- 'लम्हे' है, जिस में कवियों ने उन एहसासों को बयाँ किया है, जो हर पल को यादगार बना देते हैं। पुस्तक को पूर्ण करने में पारुल के अतिरिक्त कुछ चुनिंदा कवियों ने भी अपनी रचनाओं को साझा किया है, जो बखूबी से उनके हुनर को दर्शाती हैं।
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पारुल सक्सेना 'कहकशा'

पारुल सक्सेना, 'कहकशा' उपनाम के अंतर्गत अपने विचारों को बयां करती हैं। इन्होंने लगभग तीन वर्ष पूर्व लिखना प्रारम्भ किया। अंग्रेजी साहित्य में इनकी विशेष रुचि के चलते, इन्होंने जल्द ही अलग-अलग विधाओं में लिखना शुरू कर दिया। 'ये पल भी गुज़र जाएगा!?' पारुल की संकल्पना है, जिस पर वो दो साल से कार्यरत हैं। लगभग एक वर्ष पूर्व कुछ नए उभरते सह-लेखकों का साथ मिलने से इनकी संकल्पना समय से पूर्ण हो सकी। इस पुस्तक को लिखने के पीछे की एक खास वजह ये भी है, कि पाठकों को 'वक़्त' की खूबसूरती से रूबरू करा सकें। 'ये पल भी गुज़र जाएगा!?' पारुल की सातवीं पुस्तक है जिसमे उन्होंने अपनी कृतियों को साझा किया है। इसके अतिरिक्त इन्होंने हिंदी की पुस्तकों में अपना योगदान दिया; 'जश्न-ए-शायरी', 'इश्क़-ए-वतन', तथा अंग्रेज़ी में; 'द स्ट्रोक स्टोरीज़', 'स्पेक्ट्रम ऑफ थॉट्स', 'हेज़', 'अपोरिआ' में अपने कार्य को साझा किया।
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