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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palखादी की निष्ठा, ब्रह्मचर्य की आकांक्षा, समाज रचना में रस ; अखिल भाई का स्वयं का रस रंग अतिशय ऊँचा रहा | वे भजन रचना करते थे इतना ही नहीं; वे विनोबाजी के उपदेशों को शीघ्र ही वाणी और संगीत में बुन लेते थे | कविता, जो कंठ में बैठकर जीवनभर प्रेरणा और शिक्षण देती रहे, एक बड़ी समाज सेवा है | भूदान के गहन विचारों के गीतों के रचनाकारों में श्री अखिल भाई का नाम दर्ज रहेगा |
उनके ये गीत बाबा के कानों तक पहुँचाकर वे अधिक ही भाग्यवान बन गये हैं | बाबा जब भी अखिल भाई को देखते थे, इशारा करते थे, "भजन हो जाये |"
श्री अखिल पंड्या
हरी-भरी वसुंधरा अपने आप में मग्न रहती है और भांति भांति रूप में डोलती है। वातावरण में कोहरे की धुंध, हरि घांस पर ओस की बूंद, पथरीले नदी के प्रवाह में जलप्रपात, पहाड़ियों मैं झरने का प्रवाह,, अंगीठी से उठे धुंए की लकीर, चिड़ियों की चहचहाहट, कबूतरों की फड़फड़ाहट, पुष्पों मंडराती तितलियां, तलाव किनारे के बबूल पर मंडराते खद्योत का प्रकाश, बिजली की चमक, चांद की दमक, चांद की चांदनी, तारों की गति, मोगरे की महक, कांटों की चुभन, गाय का रंभाना, बच्चों का खिलखिलाना, मां का प्यार, पिता का दुलार, डांट भी मिलती कभी कभार। ऐसी अनगिनत रोज़ मर्रा की प्राकृतिक घटनाएं हमें रुझाति है, आनंदित करती है एवं जीवन आल्हादित करती है।
वैसे ही सहजासहज अखिलभाई जी की मधुर आवाज़ में तुलसी, कबीर, मीरा, नानक, नरसिंह इत्यादि कै भजन सुनकर हमारी सुबह होती थी। सूर्य भांति ही उनकी साप्ताहिक परिक्रमा का भी मार्ग था - घर से निवेदिता निलयम, परमधाम आश्रम, सेवाग्राम आश्रम, भारतभाई लता भाभी का निवास तथा सप्ताह के अंत में मगनवाडी स्थिति परिवार के साथ।
अध्ययन, अध्यापन का नियम जीवन के अंत तक साधा। अपनी चिर-परिचित मुस्कान एवं सरल स्वभाव से लोगों के दिल पर राज किया।
बाबा विनोबा का उनपर असीम प्रेम था। बाबा की नज़र जैसे ही अखिलभाई पर जब भी पड़ती वे आनंदित होकर कहते "गाने वाला आ गया, गाने वाला आ गया" एवं उसी क्षण उन्हें गीत गाने का आग्रह करते। एक बार तो बाबा ने हद दी - अखिलभाई को देखकर उन्होंने अपने निजी सचिव को आदेश दिया "जाओ और एक रूपए का सिक्का ले आओ"। सिक्का आते ही बाबा ने वह अखिलभाई को सुपुर्द किया - अपने अंतिम समय तक अखिल भाई यह रहस्य समझने में असमर्थ रहे। वह सिक्का आज भी हमारे घर के पूजा स्थल पर विराजमान हैं।
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